Tuesday, 12 April 2016

सोजा कि रात अभी बाकी है





सोजा कि अब रात गहरा गयी,
ज़िन्दगी भी तुझे कुछ हरा सी गयी,
सितारे भी देखो अब राह बदलने लगे,
हथेली की रेखाएं मानों छिटकने लगीं l

अपनी हथेलियों को सिरहाना बना,
 आँखों में बंदकर एक एक सपना,
जज़्ब कर खुदके अंदर सारे अरमां,
सोजा कि अब नही कोई रहमां l 

सच यही है कि तू है अभी,
बावजूद हर ग़म सभी,
धूरी है तू इस धरा की,
हवा है तू बहार की,
सोजा कि आगे राह बहुत है,
आपाधापी  और थकान बहुत है l

सुबह अभी दूर नही,
अंधेरा तो हर ग़म नही,
सुबह कि किरणें फिर होंगी रोशन,
सजेंगी फिर से वही अंजुमन,
तेरे ही करमों का सब अहसान,
होगा इख़्तियार तूझे, करेंगे पूरा हर अरमान l




ना यूं  रोज़ रोज़ डर,
ना ही यूं रोज़ रोज़ मर,
जिन्दगी  के अफ़साने अभी काफी है,
सोजा अब ,कि रात अभी भी बाकी है ll
-मधुमिता

No comments:

Post a Comment