ख्वााहिश
वो अजनबी आज
अपना सा लगे,
खुद अपनी धड़कन
ही बेगानी सी लगे,
यूँ ही मुस्कुराना भाने लगा ,
हवाओं में उड़ना भी अब आने लगा ।
बेरंग से जीवन को
गुलाबी रंग गया ,
फीकी सी मुस्कान को ,
जीवंत कर गया ,
रोज़ उससे मिलने को ,
दिल मचलता है यूँ ,
सुनने सुनाने को ,
ज़िद करता है क्यूँ !
रूठने मनाने का खेल,
दीवाना किये जाता है ,
उसे आज़मा लेने
को जी चाहता है,
जलतरंग सा बजता है,
ख्वाबों का सा मजमा है ,
हाथ पकड़ तेरे संग चलूँ,
बस अब तेरे रंग हो लूं l
इतनी सी बसख्वाहिश है ,
हाँ इतनी ही ख्वाहिश है ।।
©®मधुमिता
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