Thursday, 14 April 2016

ख्वााहिश

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वो  अजनबी  आज

अपना  सा  लगे,

खुद  अपनी  धड़कन

ही  बेगानी   सी  लगे,

यूँ  ही  मुस्कुराना  भाने  लगा ,

हवाओं   में  उड़ना  भी    अब   आने  लगा ।


बेरंग  से जीवन  को

गुलाबी  रंग  गया ,

फीकी  सी  मुस्कान को ,

जीवंत  कर  गया ,

रोज़  उससे मिलने  को ,

दिल  मचलता   है  यूँ ,

सुनने  सुनाने  को ,

ज़िद  करता है  क्यूँ !


रूठने  मनाने का  खेल,

दीवाना   किये  जाता है ,

उसे  आज़मा  लेने

को जी  चाहता  है,

जलतरंग  सा  बजता  है,

ख्वाबों  का सा  मजमा  है ,

हाथ   पकड़  तेरे   संग  चलूँ,

बस  अब तेरे  रंग  हो  लूं l


इतनी   सी  बसख्वाहिश है ,

हाँ इतनी  ही ख्वाहिश है ।।



©®मधुमिता 

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