Wednesday, 30 August 2017

यकीन..


कभी आह भरती हूँ,
कभी मुस्कुराती हूँ,
कभी अश्क बह निकलते हैं,
यादें कभी नश्तर चुभोते हैं,
क्यों अकेली हूँ मै इतनी?
एक एक पल क्यों है एक उम्र जितनी?
बैठी हूँ बुत बनकर दरवाज़े पे,
अकेली, निस्तब्ध अंधेरे में,
आतुर हूँ दो लफ़्ज़ तेरे सुनने को,
तेरे आवाज़ की मिसरी घोलने को,
तेरे आने की उम्मीद नही है लेकिन,
आयेगा तू कभी तो, है अजीब सा ये यकीन;
तूने तो चुन ली थी अपनी अलग एक राह,
बदले मे दे गया बेअंत दर्द और आह,
दिल ने मेरे चाहा तुझको,
हर पल पूजा भी तुझको,
पर ना तू आया, ना तेरी परछाई,
शुक्र है दिल के दरवाज़े पर दस्तक देती यादें मगर तेरी आईं,
कौन अब संभालेगा मुझको? कौन खुशियाँ दे जायेगा?
कौन पोंछेगा आँसू? खोई मुस्कान कौन ले आयेगा?
एक बार तो आ ज़रा, बाँहों मे मुझको थाम ले,
यकीन कर लूँ मुहब्बत पर, बेशक फिर तू अपनी राह ले।।
 
©®मधुमिता



Saturday, 26 August 2017

अपनी राह


क्यों सुनूँ मै सबकी?
तेरी, इसकी और उसकी,
मुँह बंद कर चलती जाती हूँ,
काम सबके करती जाती हूँ,
फिर भी जो बोली मै कुछ कभी,
भृकुटी सबकी तन जाती हैं तभी,
बस दोष और लानतें हैं मेरे हिस्से,
गीले, आर्द्र, दर्द भरे कुछ किस्से, 
छोड़ो मुझको सब, मत अहसान करो,
क्या हासिल, जब मेरा तुम ना मान करो,
संभालो अपनी दुनिया, संसार,
थामो अपनी चाभियाँ, अपना घर- द्वार, 
बहुत लुटा चुकी निरर्थक ही अपना प्यार,
छोड़ सब, मै चली अब इन सबके पार,
रोक नही पायेंगे मुझको कोई आँसू, ना कोई आह, 
खोज ली है कदमों ने मेरी अब खुद अपनी राह।

©®मधुमिता

Thursday, 24 August 2017

तो...


क्या रह गया है बाकी अब?
अब क्यों कुछ कहना है बताओ तो!
दूरियाँ बहुत हैं, नही मिट सकती अब।

कहो तो,क्या कहोगे तुम!
गर कह भी लोगे तो,
क्या कर लोगे तुम!

सुन चुकी हूँ बहुत तुमको,
क्या अब बदलेगा बताओ तो!
नही, अब नही सुनूँगी तुमको।

अब नही सुनती मै तुमको,
सुनती जो तुम मेरे होते तो,
मैने तो कब का छोड़ दिया तुमको।

सब बदल चुका है देखो,
दिल भी अब नही धड़कता तो
आसपास होते हो जब तुम देखो।

निज राह चुनो, आगे बढ़ो,
पीछे अब नही देखो तो,
जीवन की नयी तर्ज़ पर जीयो और आगे बढ़ो।

©®मधुमिता

Monday, 21 August 2017

एहतराम



बताओ तो कि तुम कौन हो?
हो तो तुम मेरे ही अपने,
अपने जो कभी बिछड़ गयें हो,
हो जैसे रूठे से सपने।

सपने मौन हैं,
हैं चंचल और विस्मित, 
विस्मित से ताक रहे हैं,
हैं विह्वल कुछ, कुछ चकित।

चकित हैं आवेश,
आवेश में उमड़े अनुराग,
अनुराग और अभिलाषा हैं अशेष,
अशेष रंग बिरंगे राग।

राग द्वेष सब व्यर्थ है,
है ये प्रेम मार्ग की बाधायें,
बाधायें जो निरर्थक है,
है पर देती ये मोड़ दिशायें।

दिशायें कहीं तो हैं मिलती,
मिलती तब खुशियाँ तमाम,
तमाम ज़िन्दगी जिसकी आरज़ू करती,
करती उस प्यार का एहतराम।


©®मधुमिता

अंग्रेज़ी कविता की विधा लूप पोयट्री पर आधारित

Wednesday, 16 August 2017

गर मै....


गर मै हवा होती,
चहुँ ओर मै बहती रहती, 
कभी अलसाई सी,
कभी पगलाई सी,
तुम चक्रवात से पीछे आते,
मुझको ख़ुद मे समाते,
अल्हड़,
मदमस्त।

गर मै होती कोई पर्वत,
ऊँची, आसमान तक,
शुभ्र श्वेत सी,
थोड़ी कठोर सी,
तुम बादल बन मुझे घेर जाते,
प्रेम-प्यार से मुझको सहलाते,
विस्तृत, 
असीम।

गर मै होती फूल कोई,
छुई मुई और इतराई, 
शर्मीली सी,
नाज़ुक सी,
तुम भौंरा बन आते,
इर्द-गिर्द मेरे मंडराते,
दीवाने,
मस्ताने।

गर मै होती जो धरती,
बंजर, बेजान, टूटी फूटी,
रेगिस्तान सी,
रूक्ष, शुष्क सी,
तुम बारिश बन आते,
ज़ख़्मों पर मेरे मरहम लगाते,
प्रबल,
अविरल।

गर मै चंदा होती,
सितारों के बीच जगमग करती,
सुहागन की बिंदिया सी,
स्याह आसमाँ के माथे पर दमकती सी,
तुम तब मेरे सूरज बनते,
मुझे तपाते और चमकाते,
रोशन,
प्रज्वलित ।।

©®मधुमिता

Thursday, 10 August 2017


शायर से मुहब्बत 


कभी किसी शायर के मोह मे मत पड़ना,
कभी दिल ना लगाना,
ये ढाल बन दिल में पनाह देते हैं,
कभी कोई भेस बदल, कई स्वांग रचते हैं,
कभी खुद में समेट ले चलते हैं दूर देस को,
दिल के राज़ सारे बता डालेंगे सब तुमको,
खालीपन सारा तुम्हारा भर जायेंगे,
पर तुमको ही तुमसे छीन ले जायेंगे।

हर किस्सा उनका,
हर लफ़्ज़ उनका,
मानो कोई माया जाल हो,
जिसमे फिरते तुम बेहाल हो,
हर अंतरे में शामिल एक सुंदर मुखड़ा,
मुखड़ों में छुपाये धरती,सूरज, तो कभी चाँद का टुकड़ा,
कभी दोज़ख़, कभी जन्नत, 
तो कभी ले आये पूरी कायनात। 

दीवाने ये,
मचलते परवाने ये,
तड़पते,
बहकते, 
कुछ टूटे से,
कहीं छूटे से,
मदहोश और बेख़बर,
लफ़्ज़ों के ये जादूगर। 

कभी किसी शायर से ना करना मुहब्बत, 
अपनी आँखों में ना बसाना उनकी सूरत,
बन जाओगे फिर हिस्सा उनके सुख का,
कभी अनंत दुख का,
मिलेगी फिर ग़मों की हिस्सेदारी,
निभाते रहोगे फिर ज़िम्मेदारी,
उन्हे सीने में छुपाकर खो जाने की,
किताबों के पन्नों में कहीं गुम हो जाने की।।

©®मधुमिता