Tuesday, 25 April 2017

निःशब्द 


मै पढ़ सकती हूँ तुम्हारे हाथों की भाषा,
तुम्हारी आँखों में तैरते हर भाव की परिभाषा 
मै जानती हूँ,
हर छूअन को पहचानती हूँ,
ना खेलो मुझसे आग हूँ मै,
निःशब्द हूँ पर अबोध नही,
मूक हूँ पर निर्जीव नही,
हर वार का तुम्हारे,
प्रतिशोध हूँ मै।।


©मधुमिता

#सूक्ष्मकाव्य

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