Monday, 10 April 2017


ज़िन्दगी



खूबसूरत है तू, इक पहेली है तू,
कभी अंजान सी, कभी सहेली है तू,
कभी हँसती,कभी रुलाती,
छुपती छुपाती, खूब भगाती, 
दबे पाँव आकर कभी ढप्पा बोल जाती,
ऐ ज़िन्दगी कितने रंग तू दिखा जाती।।

©मधुमिता

#सूक्ष्मकाव्य

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