Wednesday, 7 June 2017

दिल-दुनिया



एक कोने में माँ के हाथ की बुरकियाँ, 
तो कहीं हँस रही बाबा की मीठी झिड़कियाँ, 
दिखाई दे रही कुछ वाहवाही की थपकियाँ, 
देखो पीछे मचल रही जीजी की झूठी थमकियाँ।

वो छुपे घर-घर के खेल के बरतन, 
अनगिनत कागज़ के कतरन
जिनसे बनाकर कितने ही प्लेन,
उड़ा रहे देखो कैसे तन तन।

कुछ खट्टे मीठे झूठ,
देखो कैसे मै जाती थी रूठ!
पतंगों की लूट,
कितने गीत, जो गाते थे हो कर एकजुट।

मेरी गुड़िया, तेरा गुड्डा,
पहले शादी, फिर विदाई का मुद्दा,
मुँह फुलाना, मारना ठुड्डा,
फिर आपस की कुट्टम कुट्टा।

कितनी कहानियाँ, कितने किस्से,
अंताक्षरी के गीतों में फंसे,
कहीं देखो तो रूसे, 
कहीं तो देखो कैसे हैं हँसे।

खुश्बू तुम्हारे इत्र की,
आभा पहली मुहब्बत की,
वो सारे अक्षर तुम्हारी पहली चिट्ठी की,
वो सुर्ख़ लाज तुम्हारे पहले छुअन की।

सब छुपे बैठे हैं मेरे दिल के अंदर,
बसाकर एक शहर सुंदर,
यादों का अथाह समुन्दर, 
हिलोरे मारता लहराता सागर।

बस यही सब अब दुनिया है मेरे,
मुस्कान का कारण मेरे,
ये अनमोल यादों के डेरे,
मेरे , हाँ जायदाद हैं मेरे।

इनके साथ कभी रो लेती हूँ,
कभी ज़ोर ज़ोर से हँसती हूँ,
तू-तू, मै-मै भी करती हूँ,
कभी रूठती तो मान मनव्वल भी करती हूँ।

नही किसी को आने की इजाज़त यहाँ,
ये है बस मेरा जहाँ,
यहाँ चलता है बस मेरे दिल का कहा,
देखो बता दिया तुम सबको, है मेरी दुनिया छुपी कहाँ।।



 ©मधुमिता

No comments:

Post a Comment