Saturday, 3 June 2017

या रब! 

जिस तरफ देखूँ
है ग़ुबार ही ग़ुबार;
या रब ! तू कहाँ है छुपा?
देख ना , तुझको तरसती हूँ मै,
तेरी ही तलबगार ।

©मधुमिता

No comments:

Post a Comment