रावण
सोचो गर स्याह,
स्याह ना हो!
श्याम, श्याम ना हो!
गहरी कालिमा लिये
अंधकार मय सा ना हो,
कपटी, छली ना हो!
अपितु श्वेत हो!
उजला सा,
शुभ्र, धवल,
रोशनी की किरण सा प्रतित कराता,
भोला भाला सा,
विनम्रता की चादर ओढ़े,
निष्कलंक,
पवित्रता के वेश मे,
साधू के भेस मे,
हो शैतान कोई!
या रावण?
हरने एक सीता नयी।।
©मधुमिता
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