Sunday, 18 June 2017

*बापी...



मेरी नन्ही हथेलियों को कब आपने थामा था, कुछ पता नही,
कब पहले मुझे गले से लगाया था, कुछ याद नही,
पर याद है आपका मेरे बालों को काढ़ना, 
दो चोटियों में रिबन लगाना,
माँ की डांट और मेरे बीच आ खड़े हो जाना,
कभी हंस हंस कर झूठ मूठ यूँ ही डांटने लग जाना,
मुझे पढ़ाना,
तरीके से लिखना सिखाना,
किताबों से प्यार,
जानवरों से दुलार,
हेमन्त दा की मौसिकी, 
सब देन है आपकी,
बेटे की तरह पाला मुझको,
हर वो काम करवाया मुझसे,
जो दुनियानुसार केवल बेटे कर पाते हैं,
पर आप उनको जवाब करारा दे जाते थें,
खाना बनाना,
बटन टांकना, 
बल्ब बदलना, 
फ्यूज ठीक करना,
अपना काम खुद करना,
लोगों की मदद करना,
सच्चाई का देना साथ,
बुराई को ऊड़ा देना,
सब आपने सिखाया,
खुद कर करके दिखाया, 
दोस्ती की मिसाल थे आप,
देशभक्त कमाल थे आप,
देश के सिपाही,
कहाँ चले गये आप बापी,
कुछ नही आप बोले,
बस आँख मूंद एक दिन चले,
कौन झूठी डांट अब पिलायेगा मुझको,
दुनिया की आँधियों से बचायेगा मुझको,
वैसे तो सक्षम कर गये आप,
पर हम सबको अकेला कर गये आप !

©मधुमिता


*( बंगला मे पिताजी )

No comments:

Post a Comment