क्या महसूस कर पाते हो तुम?
क्या महसूस कर पाते हो तुम?
मेरे सीने मे छिपे हर दर्द को?
क्या तुम देख पाते हो
मेरे दिल के हर दरार को?
छू पाते हो क्या तुम
हर रिसते हुये ज़ख़्म को?
क्या बता पाओगे कि मेरी रूह कहाँ बसी है
और कहाँ कहाँ उसे चीरा गया है?
पैनी कटारों से उसे कहाँ गोदा गया है?
नोची गई हूँ,
उजड़ी हुई हूँ,
नुकीली, धारदार चीज़ों से बनी हूँ,
जोड़-जोड़ कर ,उस ऊपरवाले की मेहरबानी के गोंद से चिपकाई गई हूँ,
क्या उस धार को महसूस कर पाते हो तुम?
एक बेरहम सी पहेली हूँ मै,
निर्जीव, संगदिल सच्चाई का खंड हूँ मै,
शायद महसूस नही कर पाते,
पर अनुभवहीन तो हो नही!
जानते हो ना सच्चे दुश्मन दोस्त ही बनते हैं
और अच्छे दोस्त दुश्मन,
अब जो मै तुमसे बेइंतहा नफ़रत करती हूँ,
क्या महसूस कर पाते हो तुम?
झूठ धातु की गोलियों की तरह भेद गये हैं दिल को मेरे,
छलनी सा कर गये मेरे सीने को,
एक अनंत खालीपन का अहसास विह्वल कर जाता है,
कचोटता है, मुझे कुचल जाता है,
एक निर्भिक सा विस्तार है,
निडर सा अंतराल,
कोशिश में हूँ उस अजब सी उलझन को कसकर पकड़े रहने की
जो मकड़ी के जाले सी ऐसी उलझी है कि ख़ुद ही सुलझ नही थाती,
खो रही हूँ खुद को दर्द के इस मकड़जाल में,
दिन ब दिन, वक्त दर वक्त,
टूटी हुई, क्षतिग्रस्त
इस कदर कि संभाल नही पायेगा कोई,
ना कोई संग्रहित कर पायेगा मुझे!
मानो टूटे शीशे से गढ़ी गई हूँ मै,
टूटी हुई, बिखरी सी, चकनाचूर,
क्या महसूस कर पाते हो तुम?
कोई खाली सी खोल हूँ मै,
एक मौन सा आवरण,
जिसमें कभी कोई तत्व था,
रक्त सा पदार्थ,
जिसका कोई महत्व था,
कोई अहमियत थी,
जिसमें एक जान बसती थी,
एक जिस्म था
जिसमें एक दिल धड़कता था,
एक रूह थी,
उड़ती फिरती,
अरमानों और ख़्वाहिशों से भरी पूरी,
अब टूटे टुकड़े गिर रहे हैं इधर उधर,
मुहब्बत चोट खाई हुई है,
ज़ख़्म बेशुमार है,
दिल चूर चूर है,
मुहब्बत रोती ज़ार ज़ार है,
क्या महसूस कर पाते हो तुम?
नाइंसाफ़ी और बेइंसाफ़ी की स्वर- संगति
एक अजब सी धुन बजाती है,
इन कानों में ज़हर सा घोलती है,
प्रेम गीतों की लोरी कभी सुनाती है,
बचपन के भय सा डरा जाती है
एक उलझन मानों सुुुलझने को है,
एक उलझन मानों सुुुलझने को है,
मंत्रों का वृंदावन सा उच्चारण,
परियों का सहगान
सुनाई देता है अब,
सब अहसास आँसू बन पिघलने लगे हैं,
सब हांथ तोड़ अविरल धारा बहने तगी है,
दर्द की लहरें दौड़ रही थीं मेरे जिस्म मे
कि अचानक वह दानव आ खड़ा हुआ
हमेशा के विछोह और विच्छेद का!
शायद अब तो महसूस कर पाये होगे तुम?
©मधुमिता
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