Friday, 16 June 2017

हरी भरी..



हरी भरी दूब सी मख़मली धान,
मीलों फैले खेत खलिहान,
मुस्कुराती नारियाँ 
पहने रंग बिरंगी साड़ियाँ,
कुछ बोती, 
कुछ रोंपती, 
सर सर भागती सड़क,
ऊपर चमकता सूरज कड़क,
सूरज की अग्नि को अपने आँचल मे समेटे,
खुदपर  एक मुस्कान लपेटे,
मेहनत करती जाती है,
पसीने से अपनी,इस धान को नहलाती है,
हरियाली जब लहलहाती है,
तो वे फूली नही समाती है,
उस खुशी से धान भी महकती है,
दुगुना पुष्ट हमें करती है,
कभी जाओ कभी जो इस सड़क पर तो एक नज़र इनपर भी डालो,
कुछ बोलो बतियाओ, तनिक इन संग मुस्कुरा लो,
हरियाली ओढ़े, जीवन रूपी हर रंग की रानी हैं ये,
हरे धान का चास करती, जीवन दायिनी हैं ये ।।

©मधुमिता

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