Saturday, 22 October 2016

अस्तित्व..




आज मैंने अपने जीवन पर मार दिया है काटा,

सारी की सारी खुशियों को इधर उधर दे बांटा,

जन्मों जन्मांतर से मुझको नही है, खुशियों पर अधिकार,

कुछ ज्यादा कहा तो “मेरा कहा”, कहलाया जायेगा अहंकार।



जो ढीठ बनकर कभी मैंने “मै” की ठानी ,

तो अस्तित्व मेरी ही कहला दी जाएगी बेनामी,

सबको खुश रखना और चुप रहना है कर्त्तव्य मेरे,

अपनी खुशियाँ,अपना जीवन ही नही बस,बस में मेरे।


बेटी बनकर, पिता की सुनूँ,

पत्नी बनकर सुनूँ पति की,

बेटे की सुनूँ माँ बनकर,

बस यही मेरा मुकद्दर ।


मूक-बधिर बनकर रह जाऊँ

इसी में सबकी खुशियाँ,

जो खुद अपनी राह खोजकर, डग भरूँ,

तो मै निर्लज्ज कहलाऊँ। 



क्या करूँ और क्या ना करूँ,

 है बड़ी विचित्र सी विडम्बना,

अरे निष्ठुर! मुझे नारी और नारी के अस्तित्व को ही यूँ 

 क्यूँ बनाया? पूछूंगी  ज़रूर उससे जब होगा मिलना,

ऊपरवाले से मुखा-मुख जब होगा मेरा सामना।।

©मधुमिता

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