Sunday, 2 October 2016

समय खङा इंतज़ार में....




सूरज की लालिमा 
जब हरती रात की कालिमा,
हरी,सौम्य सी, शालीन
नर्म मखमली दूब की कालीन
पर मेरे पैरों को छूते 
स्निग्ध ओस की बूँदें,
ठंडी, रेशमी हवा की बयार,
उन संग झूमती फूलों की कतार,
लाल,नारंगी,गुलाबी, नीले,
कुछ रंग बिरंगे, कुछ श्वेत और पीले,
पास से आती, लहरों का शोर,
हवा भी चलती उनकी ओर,
ले आतीं कुछ बूँदें अपने परों पर, 
कर जातीं मुझे सराबोर
शुभ्र सी ताज़गी से,
बढ़ जाती मै ज्यों आगे
अपनी मंज़िल की ओर,
जहाँ मचलते सागर का शोर
और अथाह पानी नमकीन,
मेरे पग अपनी धुन में तल्लीन, 
निकल आये रेतीले किनारे पर,
अपने प्रीतम के बुलावे पर,
जहाँ सुनहरी सी रेत पर,
एक रंगीन नगीने से सीप के अंदर,
मोती सा चमकता मेरा प्यार
और एक गीला सा ऐतबार
बैठा था बेसब्री से,
वहीं, जहाँ समय खङा था इंतज़ार मे।।

©मधुमिता

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