एक और बेचारी..
एक और बेचारी
साँसों को तरसती
अजीब सी लाचारी
लिए, मृत्यु की हो ली,
सुंदर सी,
छरहरी सी काया,
पङी हुई नदी किनारे
क्यों कोई उसे बचाने ना आया!
अरे कोई उसे उठाओ,
आराम से,
हाँ ज़रा प्यार से,
हौले से उसे पुकारो,
थोङा सा पुचकारो,
शायद वो गुस्सा थूक दे,
बेबसी सारी छोङ के,
मुस्कुराती वो उठ जाये!
कपडों में उसके
नदी अभी भी बह रही है,
खुली हुई पथरीली आँखें
दर्द भरी कोई कहानी कह रही है,
बंद करो उसके दो नैन,
निर्जीव, पर बेचैन,
जहाँ भर का दुःख उनसे बह रहा है,
कोई तो उन्हे किसी तरह रोको!
लंबे घने केशों से भी
बूंदों संग उसके
अंदर का ज़हर रिस रहा है,
सूखे होठों के कोने से
बहता लहु ,
बेजान दिल का दर्द
बयां करता है,
कोई इस लहु को पोंछो, ग़म को उसके रोको!
कौन है वो?
क्या नाम है उसका?
कहाँ से बहकर आई थी?
कहाँ उसे जाना था?
यहाँ तो हर शख्स उससे
अनजाना था ,
कहीं तो कोई दर होगा जो उसका होगा,
कोई घर जो उसका अपना होगा!
माँ, बाबा,
भाई बहन,दादी दादा,
पति, बच्चे, सास ससुर,
कोई हमराज़, कोई हमसफर,
नाते, रिश्ते,
संगी साथी,
सब को छोङ
क्यों लिख डाली इसने दर्द की पांती!
क्या थोङी वो सहमी होगी?
ज़रा सा डरी होगी?
कदम भी पीछे खींचे होंगे,
फिर, फिर आगे बढ़ी होगी,
या आगे बढ़ी होगी बेझिझक,
पीङित वह बेहिचक,
मौत को गले लगाने को
बह गई वो उतावली!
अजानी सी,मिट्टी से लथपथ,
अनाम एक देह धरती पर,
ठंडी, मृत, बेजान,
कठोर, पत्थर, निश्चल,अज्ञान,
दर्द में लिपटी हुई, आज अग्नि में जल जायेगी,
मौत को गले लगा, शायद छुटकारा पा जायेगी
यही सोच सब कुछ अपना पीछे छोङ आई,
हर अहसास से अपनी, वह मुँह मोङ आई!
कानाफूसी चल रही,
अटकलें भी लगा रहीं,
क्यों नही वो लङी तकलीफ से?
क्यों हार गयी किस्मत से?
दुःख को उसके समझो अब,
हार कर ही खत्म किया होगा उसने सब,
मत अनाम का नाम खराब करो,
एक नारी को यूँ ना बदनाम करो!
©मधुमिता
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