Monday, 27 June 2016


ओ बेरहम


आँखें आँसूओं से भरीं,
होंठों पर जम गयी है पपङी,
कोई लट इधर है,तो कोई उधर,
बिखरी,बिखरी, जटायें सी, 
बालों में ना तेल,ना कंघी,
ना माथे पर बिंदी ,
ना गालों पर लाली
ना आँखों में काजल की धार,
ना चूङी की खनक,
खो गयी पायल की झंकार ।

नही इत्र की महक है आसपास,
नही कोई रंग जीवन में, 
पर अभी भी तुम्हारी खुशबू है
रची-बसी मेरे रोम-रोम में, 
पागल सी मैं जिये जा रही,
इस खूशबू की आस में,
बंजर सी इस रेती में,
मृगतृष्णा सी प्यास लिये,
एक-एक दिन गिनती जाती हूँ,
साँसों का बोझा साथ लिये । 

तुम्हारी यादों को अब तलक 
जी रही हूँ, शायद कल भी
यूँ ही जीती जाऊँगी, मर मर कर,
तुम्हारे इंतज़ार में, 
कभी ना खत्म होने वाली,
टकटकी लगाकर देखती रहती हूँ,
सामने से गुज़रती सङक और गली
को,हर साये से तुम्हारे आने का अहसास
होता है,और उसके गुज़र जाते ही,
हाथ आ जाता है  नाउम्मीदी का साथ ।

मुझे याद है जब मिले थे तुम आखिरी बार,
करने अपने शब्दों के वार,
कहा था तुमने कि अब नही चल पायेंगे साथ,
बहुत रोई थी मैं,दिया था वास्ता
अपनी रंगी सी,खुशनुमा दुनिया का,
जो दोनों ने मिलकर बसाई थी,
अपने सपनों के सतरंगी गोटों से सजाई थी,
पर तुमने मेरी एक ना मानी,
रोता बिलखता देखकर भी तुम 
ना पसीजे, ना रुकने की ठानी।

कैसे बेरहम निकले तुम,
पहले तो हर ज़ख़्म पर
मरहम लगाते थे,
मीठे-मीठे बोलों से अपनी
मन को कैसे लुभाते थे,
क्यों हो गये इतने निष्ठुर,
मारकर मुझको ठोकर,
मेरी यादों से भी लिया मुँह मोङ,
मुझको बर्बाद करते हुये, 
क्यों तुम्हारी रूह ना कांपी!

कोई एक आँसूं भी मेरा
तुमको पिघला ना पाया,
कोई भी अदा मेरी 
तुम्हे मोह जाल में बांध ना पायी,
मेरे जहाँ को छोङकर,
मेरी दुनिया को बेरहमी से तोङकर,
मेरी  बर्बादी पर तुम यूँ 
मुस्कुराकर  चल  दिए,
जैसे कि हमारी अपनी दुनिया  
कभी, कहीं बसी  ही ना  थी ।।

-मधुमिता

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