बेटी की अभिलाषा
आज भी मै बेटी हूँ तुम्हारी,
बन पाई पर ना तुम्हारी दुलारी,
हरदम तुम लोगों ने जाना पराई,
कर दी जल्दी मेरी विदाई।
जैसे थी तुम सब पर बोझ,
मुझे भेजने का इंतज़ार था रोज़,
मुझे नही था जाना और कहीं,
रहना था तुम्हारे ही साथ यहीं।
पर मेरी किसी ने एक ना मानी,
कर ली तुम सबने अपनी मनमानी,
भेज दिया मुझे देस पराया,
क्या सच में तुमने ही था मुझको जाया?
जा पहुँची मैं अनजाने घर,
लेकर एक छुपा हुआ डर,
कौन मुझे अपनायेगा,जब तुमने ना अपनाया,
यहाँ तो कोई नही पहचान का,हर कोई यहाँ पराया।
यहाँ थी बस ज़िम्मेदारी,
चुप रहने की लाचारी,
हर कुछ सुनना,सहना था,
बाबुल तेरी इज्ज़त को संभाल कर रखना था।
क्यों तुमने मुझे नही पढ़ाया,
पराये घर है जाना,हरदम यही बताया,
क्यों मुझे आज़ादी नही थी सपने देखने की,
ना ही दूर गगन में उङने की ।
सफाई,कपङे,चौका,बरतन,
इन्हीं में बीत गया बचपन,
यहाँ नही,वहाँ नही,ऐसे नही,वैसे नही,
बस इन्हीं में बंधकर रह गयी।
प्रश्न करने की मुझे मनाही थी,
उत्तर ढूढ़ती ही मै रह जाती,
कुछ पूछती तो,टरका दी जाती,
आवाज़ मेरी क्यों दबा दी जाती!
आज भी मैं पूछूँ ख़ुद से,
क्यों सिर्फ बेटा ही ना मांगा तुमने रब से?
बेटा तुम्हारे सिर का ताज,
वो ही क्यों तुम्हारा कल और आज ?
बेटा कुलदीपक कहलाये,
वही तुम्हारा वंश चलाये,
है उसको सारे अधिकार,
उसी से है तुम्हारा परिवार।
मुझे क्यों नही मिला तुम्हारा नाम,
मैं भी क्यों नही चलाऊँ तुम्हारा वंश और काम,
मैं भी क्यों ना पढ़ूँ और खेलूँ,
दूर,ऊँचे सितारों को छू लूँ ।
इस बार तो तुमने करली अपनी,
अगली बारी मैं ना सुनूँगी सबकी,
हाँ,अगले जन्म मै फिर घर आऊँगी,
फिर से तुम्हारी बेटी बन जाऊँगी ।
हर प्रश्न का जवाब माँगूंगी तुमसे,
साथ रहूँगी सदा तुम्हारे ज़िद और हठ से,
प्रेम प्यार, मै सब तुमसे लूँगी ,
हक और अधिकार अपने,सारे लेकर रहूँगी।
खूब पढ़ूगी, खूब खेलूँगी,
इस जग में, बङे काम करूँगी,
नाम तुम्हारा रोशन होगा,
सिर तुम्हारा गर्व से ऊँचा रहेगा।
तब तुमको मुझे पूरी तरह अपनाना होगा,
बेटे और बेटी का भेद तुम्हें मिटाना पङेगा,
दोनों को एक से जीवन का देना वरदान,
मुझे भी अपने दिल का टुकङा मान,बनाना अपनी जान।
तब चटर पटर मैं खूब बतियाऊँगी,
इस बार की सारी कसर पूरी करूँगी,
कभी माँ के आँचल तले छिप जाऊँगी,
कभी बाबा की गोदी में बैठ लाङ करूँगी।
तब तुम मुझसे,मेरी इच्छाओं कहाँ बचकर जाओगे,
सुन लो, इस दुनिया की ना तब सुन पाओगे,
बेटा और बेटी,दोनों का साथ रहेगा,तुम्हारे साथ,
मै भी पाऊँगी तुम्हारा सारा प्यार,सिर पर तुम्हारे आशीष का हाथ।।
-मधुमिता
आज भी मै बेटी हूँ तुम्हारी,
बन पाई पर ना तुम्हारी दुलारी,
हरदम तुम लोगों ने जाना पराई,
कर दी जल्दी मेरी विदाई।
जैसे थी तुम सब पर बोझ,
मुझे भेजने का इंतज़ार था रोज़,
मुझे नही था जाना और कहीं,
रहना था तुम्हारे ही साथ यहीं।
पर मेरी किसी ने एक ना मानी,
कर ली तुम सबने अपनी मनमानी,
भेज दिया मुझे देस पराया,
क्या सच में तुमने ही था मुझको जाया?
जा पहुँची मैं अनजाने घर,
लेकर एक छुपा हुआ डर,
कौन मुझे अपनायेगा,जब तुमने ना अपनाया,
यहाँ तो कोई नही पहचान का,हर कोई यहाँ पराया।
यहाँ थी बस ज़िम्मेदारी,
चुप रहने की लाचारी,
हर कुछ सुनना,सहना था,
बाबुल तेरी इज्ज़त को संभाल कर रखना था।
क्यों तुमने मुझे नही पढ़ाया,
पराये घर है जाना,हरदम यही बताया,
क्यों मुझे आज़ादी नही थी सपने देखने की,
ना ही दूर गगन में उङने की ।
सफाई,कपङे,चौका,बरतन,
इन्हीं में बीत गया बचपन,
यहाँ नही,वहाँ नही,ऐसे नही,वैसे नही,
बस इन्हीं में बंधकर रह गयी।
प्रश्न करने की मुझे मनाही थी,
उत्तर ढूढ़ती ही मै रह जाती,
कुछ पूछती तो,टरका दी जाती,
आवाज़ मेरी क्यों दबा दी जाती!
आज भी मैं पूछूँ ख़ुद से,
क्यों सिर्फ बेटा ही ना मांगा तुमने रब से?
बेटा तुम्हारे सिर का ताज,
वो ही क्यों तुम्हारा कल और आज ?
बेटा कुलदीपक कहलाये,
वही तुम्हारा वंश चलाये,
है उसको सारे अधिकार,
उसी से है तुम्हारा परिवार।
मुझे क्यों नही मिला तुम्हारा नाम,
मैं भी क्यों नही चलाऊँ तुम्हारा वंश और काम,
मैं भी क्यों ना पढ़ूँ और खेलूँ,
दूर,ऊँचे सितारों को छू लूँ ।
इस बार तो तुमने करली अपनी,
अगली बारी मैं ना सुनूँगी सबकी,
हाँ,अगले जन्म मै फिर घर आऊँगी,
फिर से तुम्हारी बेटी बन जाऊँगी ।
हर प्रश्न का जवाब माँगूंगी तुमसे,
साथ रहूँगी सदा तुम्हारे ज़िद और हठ से,
प्रेम प्यार, मै सब तुमसे लूँगी ,
हक और अधिकार अपने,सारे लेकर रहूँगी।
खूब पढ़ूगी, खूब खेलूँगी,
इस जग में, बङे काम करूँगी,
नाम तुम्हारा रोशन होगा,
सिर तुम्हारा गर्व से ऊँचा रहेगा।
तब तुमको मुझे पूरी तरह अपनाना होगा,
बेटे और बेटी का भेद तुम्हें मिटाना पङेगा,
दोनों को एक से जीवन का देना वरदान,
मुझे भी अपने दिल का टुकङा मान,बनाना अपनी जान।
तब चटर पटर मैं खूब बतियाऊँगी,
इस बार की सारी कसर पूरी करूँगी,
कभी माँ के आँचल तले छिप जाऊँगी,
कभी बाबा की गोदी में बैठ लाङ करूँगी।
तब तुम मुझसे,मेरी इच्छाओं कहाँ बचकर जाओगे,
सुन लो, इस दुनिया की ना तब सुन पाओगे,
बेटा और बेटी,दोनों का साथ रहेगा,तुम्हारे साथ,
मै भी पाऊँगी तुम्हारा सारा प्यार,सिर पर तुम्हारे आशीष का हाथ।।
-मधुमिता
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