Thursday, 16 June 2016

तेरे इंतज़ार में 



तबियत कुछ नासाज़ है,
दिल ज़रा उदास है,
तेरे ना होने से इधर,
मैं हूँ बेसुध सी,बेखबर।

माथे की बिंदी ना दमके,
चमचम चमचम क्यों ना चमके!
क्यों फीकी सी पङी है इस कदर,
सूर्ख़,फिर भी बेरंग मगर।

खिलखिलाती ना चूङियों की खनक,
टीस उठाती सी मानो इक कसक, 
बोल उठती है खनखनाकर, 
तू किधर,तू किधर।

पायल की मीठी झंकार
भी बजने से करती इंकार,
फिरती थी दिन रात जो छनछनाकर, 
अब बैठी है मुझसे रूठकर।

कानों की बाली,
मस्त सी मतवाली,
अब ना झूमती इतराकर,
बस देखे मुझको टुकुर टुकुर।

सोने का मेरे गले का हार,
निष्तेज़ पङा करे चित्कार,
बार बार तुझे ढूढ़कर,  
चुप है देख थक हार कर।

नज़ाकत से भरी मेरी चाल,
अब हो रही है बदहाल,
ले चलती है यूँ घसीटकर,
तेरी आवाज़ की लय पर।

तेरी आहट के बिना,
सब कुछ सूना,
अब तो आजा,ना रह और मुँह मोङकर, 
तेरे दरस की प्यासी,यूँ ही चली ना जाऊँ,सब कुछ छोङकर।। 

-मधुमिता

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