Friday, 1 December 2017

उम्मीद...


सूखे हुये पत्तों 
और इस सन्नाटे में
सुस्ता रही है एक उम्र,
 साथ है मेरी तन्हाई,
ठूंठों को सहलाती
जिला जाती कुछ साँसें,
चंद पन्नों में दर्ज़ 
कुछ मीठे से अल्फाज़
और ख़्वाबों से कुछ
यादगार लम्हात,
चाय के उस प्याले में
अभी तलक नक्श हैं
सुर्ख़ से दो लब,
जो लबों को मेरे छूकर
अहसास करा जाते हैं 
तेरी मौजूदगी का,
तुझे छूकर आती 
एक ताज़ी हवा का झोंका,
उम्मीदों से भर जाती है मुझे
और मेरी तन्हाई को।। 

©®मधुमिता

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