Sunday, 24 December 2017


शब्दों का स्पन्दन ...



लिखती हूँ पातियाँ कई
कविता करती हूँ हर दिन नई,
शब्दों को बुनती हूँ,
कुछ राग गूंथती हूँ,
गीत गुनगुनाती हूँ,
तुझको बुलाती हूँ,
साँझ- सवेरे,
इन अधरों पर मेरे,
नाम तेरा ही सजा रखा है,
वचनों को कुछ संजो रखा है, 
वादियों में तुझे ढूंढ़ती ,
तेरी खुशबू हवाओं में खोजती,
एक आस है,
निश्चय है, विश्वास है,
कि मेरी खोई सी आवाज़,
ये सुगम शब्दों का साज़,
तुझ तक तो पहुँचेगी कभी,
ज़रूर पा जाएँगीं तुझको कहीं,
खींच लायेगी मेरे शब्दों की डोर
तुमको इक दिन मेरी ओर,
मेरी आवाज़ हो,ना हो सही,
इन शब्दों का स्पन्दन ही सही !

©®मधुमिता

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