Saturday, 30 December 2017

जज़्बात...




कोहरे की चादर के पीछे छिपा ये अलसाया सूरज

और रज़ाई के अंदर दुबके,अलसाये से तुम,

उठो उठो की मेरी पुकार,

रुको, रुको कहता तुम्हारा इन्कार,

प्याली में ठंडी होती चाय

और बर्फ पड़ रहे मेरे जज़्बात,

दोनों में ज़्यादा फ़र्क तो नही!

हाँ चाय की प्याली ज़रूर दुबारा गर्म हो जाती है

उस धात के चौरस डिब्बे मे 

बिजली की छोटी छोटी चुम्बकनुमा तरंगों से,

और रज़ाई के लिहाफ़ के अंदर छिप जाते हैं 

एक और सुबह का इंतज़ार करते,

मेरे जज़्बात!

©®मधुमिता

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