Friday, 14 July 2017

भारतीय रेल




बचपन कि छुकछुक गाड़ी,
कितनी अनोखी ये रेलगाड़ी,
मुंबई से इलाहाबाद, 
कोलकाता से अहमदाबाद, 
ताबड़तोड़ यह दौड़ती है,
कभी नही फिर भी थकती ये,
सभी को यह अपनाती,
सब को खुद मे यह समाती,
हिंदू , मुस्लिम,
सिख, ईसाई, 
आपस में सब भाई-भाई,
इसने यही बस जाना है,
सबको अपना माना है,
प्लेटफाॅर्म पर रुकती थमती, 
सबको गंतव्य तक पहुँचाती,
जम्मू या कन्याकुमारी,
रायपुर हो या देवलाली, 
कानपुर के लाला जी,
तमिलनाडु की माला जी,
चाचा चाची,
काका काकी,
ताऊ ताई, 
दीदी और भाई,
कितने रिश्ते बन जाते हैं,
जब बैठ इसमें सब मिल रोटी खाते हैं,
दूर देशों की सैर कराती,
यात्रियों को भ्रमण करवाती,
छू-छू जाती खेत खलिहान, 
जंगल, बीहड़, चाय बागान,
चलती जाती भारतीय रेल,
करवाती दिलों के मेल,
लाल और नीले डब्बों के साथ,
चलायमान देखो छुकछुक गाड़ी,हर दिन रात।।

©®मधुमिता

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