ज़ख़्म...
आँखों का नमक चीसता है,
दिल का दर्द टीस देता है,
एक हूक सी उठती है,
कसक सी दे जाती है,
ज़ख़्म सारे हरे से हैं देखो,
ना सूखते हैं, ना मुरझाते हैं ये देखो,
ना जाने कौन कम्बख़्त इनको पानी और चारा देता है?
ये नमकीन पानी जो बहता हैं इन दो आँखों से, क्या यही इनको जीवनदान देता है?
इस बेरहम दर्द को ज़रा रोका जाये,
कुछ मीठे पलों की यादों से सेंका जाये,
चलो कुछ देर इन आँखों को मूंदा जाये,
कुछ नासूर से ज़ख़्मों को भूला जाये ।।
©मधुमिता
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