Thursday, 13 July 2017

बौछार



शीशे के उस ओर
जल का ये कैसा शोर!
थल भी है जलमग्न ,
प्यासी धरती की बुझ गयी अगन l 

बादल खेलें अठखेलियाँ ,
वृक्ष तरु सब हमजोलियाँ ,
पन्नों से चमचम करते हैं पत्ते,
बूँदों की लय पर थिरकते।

हर चीज़ बहती जाती है,
मदमस्त पवन भी सुनो गाती है,
सब कुछ है साफ, धुली धुली,,
सद्य स्नाता सी उजली उजली।  

शीतल कर जाती बूँदों की बौछार,
काले गहरे घन करे पुकार,  
छूने को अातुर ये मस्त मौला मन ,
हर पल रंग बदलता,नटखट सा ये गगन ।।

©®मधुमिता

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