मैं हूँ,क्योंकि तुम हो
मैं हूँ, क्योंकि तुम हो,
वरना शायद मैं हूँ ही नही,
तुम्हारे अस्तित्व के बगैर मै भी ना हूँगी,
तुम नही होगे,तो मै भी ना रहूँगी ।
बस्तियों में, फिज़ाओं में,
ठंडी-ठंडी हवाओं में,
ऊँचे पहाड़ों तलक,
ज़मीं और फ़लक
तक,मुझे पंख देकर
ले जाते हो उङाकर,
घने,बर्फीले कोहरे से,
काले घने अंधेरे से,
तुम्हारे अंदर की रोशनी,
मुझे निकाल ले जाती यूँ ही,
मानो उस कोहरे को काटना,
अंधेरे को झट चीरना,
बस बायें हाथ का खेल हो तुम्हारे,
हर चीज़ से लङ लोगे,जो आये बीच हमारे,
बङे-बङे पहाङ,पर्वत,रोङे,
अदृश्य से असंख्य महीन डोरें,
जो रोक रहीं थीं कदम हमारे,
कोई जीत ना पाया,सब हारे।
तुम ही तो हो मेरे स्वर्णिम किरण,
स्वच्छंद,कुलांचे भरता हिरण,
जैसे मेरा हरपल हरकत में आया मन,
मेरे हीरे,जवाहरात,मेरा हर धन,
इत्र की महक तुम,
ज़िन्दगी का सबब तुम,
गुलाबों की महक हो,
अंगारों की दहक हो
कभी,तो कभी पूनम के चांद से शीतल,
शीतलता बहती जिससे अविरल,
जुगनुओं की चमक कभी,
पंछियों की चहक कभी,
कभी प्यार मेें तपता सूर्ख़ गुलाब,
कभी ठंडा सा कर जाता आब,
ना जाने कितने रंग छिपे हैं,
कितने तुमने रूप धरे हैं,
चुपके से मुझमें हो गये दाख़िल,
होने को मेरी ज़िन्दगी में शामिल ।
हर चीज़ आज पीछे है मेरे,
क्योंकि सब पीछे हैं तुम्हारे,
यूँ ही मैं तुम हुई,तुम मै हुए,
और मै और तुम,दोनों हम हुए,
यह है हमारा प्यार,
तुम्हारा और मेरा प्यार,
जो रहेगा यूँ ही बरसों,
जवां सा आज,कल और परसों,
ढलते रहेंगे दिन और रात,
चलता रहेगा हमारा साथ,
एक साथ लिखेंगे एक हसीन कहानी,
खुशियों से भरी,थोङी रुमानी,
ये प्यार ही है जिसने मुझे थामा है,
तुमको भी थामा है,
तुम्हारा प्यार मुझे यहाँ ले आया,
मेरा प्यार तुमको मुझ तक लाया,
ये प्यार हमको एक कर गया है,
मै और तुम से हम बना गया है।
तभी तो, मैं हूँ, क्योंकि तुम हो,
वरना शायद मैं हूँ ही नही,
तुम्हारे अस्तित्व के बगैर मै भी ना हूँगी,
तुम नही होगे,तो मै भी ना रहूँगी ।।
-मधुमिता
मैं हूँ, क्योंकि तुम हो,
वरना शायद मैं हूँ ही नही,
तुम्हारे अस्तित्व के बगैर मै भी ना हूँगी,
तुम नही होगे,तो मै भी ना रहूँगी ।
बस्तियों में, फिज़ाओं में,
ठंडी-ठंडी हवाओं में,
ऊँचे पहाड़ों तलक,
ज़मीं और फ़लक
तक,मुझे पंख देकर
ले जाते हो उङाकर,
घने,बर्फीले कोहरे से,
काले घने अंधेरे से,
तुम्हारे अंदर की रोशनी,
मुझे निकाल ले जाती यूँ ही,
मानो उस कोहरे को काटना,
अंधेरे को झट चीरना,
बस बायें हाथ का खेल हो तुम्हारे,
हर चीज़ से लङ लोगे,जो आये बीच हमारे,
बङे-बङे पहाङ,पर्वत,रोङे,
अदृश्य से असंख्य महीन डोरें,
जो रोक रहीं थीं कदम हमारे,
कोई जीत ना पाया,सब हारे।
तुम ही तो हो मेरे स्वर्णिम किरण,
स्वच्छंद,कुलांचे भरता हिरण,
जैसे मेरा हरपल हरकत में आया मन,
मेरे हीरे,जवाहरात,मेरा हर धन,
इत्र की महक तुम,
ज़िन्दगी का सबब तुम,
गुलाबों की महक हो,
अंगारों की दहक हो
कभी,तो कभी पूनम के चांद से शीतल,
शीतलता बहती जिससे अविरल,
जुगनुओं की चमक कभी,
पंछियों की चहक कभी,
कभी प्यार मेें तपता सूर्ख़ गुलाब,
कभी ठंडा सा कर जाता आब,
ना जाने कितने रंग छिपे हैं,
कितने तुमने रूप धरे हैं,
चुपके से मुझमें हो गये दाख़िल,
होने को मेरी ज़िन्दगी में शामिल ।
हर चीज़ आज पीछे है मेरे,
क्योंकि सब पीछे हैं तुम्हारे,
यूँ ही मैं तुम हुई,तुम मै हुए,
और मै और तुम,दोनों हम हुए,
यह है हमारा प्यार,
तुम्हारा और मेरा प्यार,
जो रहेगा यूँ ही बरसों,
जवां सा आज,कल और परसों,
ढलते रहेंगे दिन और रात,
चलता रहेगा हमारा साथ,
एक साथ लिखेंगे एक हसीन कहानी,
खुशियों से भरी,थोङी रुमानी,
ये प्यार ही है जिसने मुझे थामा है,
तुमको भी थामा है,
तुम्हारा प्यार मुझे यहाँ ले आया,
मेरा प्यार तुमको मुझ तक लाया,
ये प्यार हमको एक कर गया है,
मै और तुम से हम बना गया है।
तभी तो, मैं हूँ, क्योंकि तुम हो,
वरना शायद मैं हूँ ही नही,
तुम्हारे अस्तित्व के बगैर मै भी ना हूँगी,
तुम नही होगे,तो मै भी ना रहूँगी ।।
-मधुमिता
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