वह सांझ
देखो वह सांझ,
बिल्कुल वैसे ही आज
भी,जैसे तब थी,
जब छुपी होती
मै,तुम्हारी बाँहों में थी,
मै ही दुनिया थी
तब बस तुम्हारी,
मै भी तुम पर थी अपना दिल हारी,
खो दिया हमने उस मखमली सांझ को,
रेशम से अपने कल और आज को।
खूबसूरत सी सांझ,
और ठंडी पङती सूरज की आंच,
मै और तुम साथ-साथ,
एक दूजे के हाथों में हाथ,
चुपके से हम निकल लेते,
हर नज़र से बचते बचाते,
दूसरों से नज़रें चुराते,
जैसे ही गुलाबी-सलेटी संध्या को छिपते-छिपाते,
चुरा ले गयी गहरी सुरमई सी,
तारों टंकी, रूपहली रात ही।
मैंने अपने झरोखे से कई बार है देखा,
डूबते सूरज की अद्भुत छटा,
मन की आँखों से देखा है अनेको बार,
दूर देश,सात समुन्दर,तेरह नदियों पार
पहाङों के पीछे जा छुपता,
संतरी सा सूरज का चेहरा,
मानों जैसे सुनहरा सिक्का,
गोल-गोल सा कभी हाथों में मेरे आ बैठता,
जला जाता था मेरी हथेली को,
दे जाता था,कई फफोले वो।
तब मै तुम्हे याद करती थी दिल से,
सच,पूरे मन से,
महसूस करती थी तुम्हे वहीं,
मेरे गले में डाले बाँहें अपनी,
ठंडक सी पहुँचा जाते थे दिलो जान मे,
समा लेते थे मेरी आत्मा को अपने में,
अपने होंठों के चुंबन से पोंछ जाते,
जितने भी मेरे दर्द तुम वहाँ पाते,
रोम रोम मेरा तुमको छू-छू जाता,
तुम ना होते,पर तुमसे आलिंगन बद्ध हो जाता।
कहाँ थे तुम तब?
मुझे ज़रूरत थी तुम्हारी जब,
थे तब तुम किसके साथ?
क्या करते थे मेरी बात
अपने साथी से?
आती थी क्या मेरी भी याद,भूले भटके से?
मै भी तो तुम्हारी दुनिया का हिस्सा हूँ,
तुम्हारे दिल के एक कोने में मै भी तो हूँ,
मेरा दिल तो कभी का तुम्हारा हुआ,
खुद को भी था तुम्हारे हवाले किया।
फिर क्यों मेरे प्यार की दुनिया,सिर्फ मेरी थी!
प्यार की अग्नि में बस मै जलती थी!
जब दिल दुःखी होता था
और तुम्हे आसपास मांगता था,
तब सिर्फ मेरा प्यार मेरे साथ होता,
तुम्हारा साया तक ना कभी करीब होता,
एक मायूस से,मासूम पिल्ले जैसा,
प्यार मेरा,मेरे पैरों के पास आ बैठता,
मानों करता हो ढेरों फरियाद,
बस मन में प्यार पाने की आस।
हर जीवन की शाम तुम्हारा प्यार और कम हो जाता,
जैसे उन पहाङों के पीछे रोज़ सूरज गुम हो जाता,
सांझ की मद्धिम सी रोशनी,
यादों के अक्स पोंछती,
कुछ ज़िन्दा सी तस्वीरें,
सांसें लेती धीरे-धीरे ,
रोज़ मेरी पलकें हैं उन्हें बुहारती,
ज़रा धुंधली सी पङती,पर जीवन में मेरे रंग भरती,
आज भी वह सांझ वहीं है ठहरी,
प्यार भरा दिल लिये,जहाँ मैं अब भी खङी।।
©मधुमिता
देखो वह सांझ,
बिल्कुल वैसे ही आज
भी,जैसे तब थी,
जब छुपी होती
मै,तुम्हारी बाँहों में थी,
मै ही दुनिया थी
तब बस तुम्हारी,
मै भी तुम पर थी अपना दिल हारी,
खो दिया हमने उस मखमली सांझ को,
रेशम से अपने कल और आज को।
खूबसूरत सी सांझ,
और ठंडी पङती सूरज की आंच,
मै और तुम साथ-साथ,
एक दूजे के हाथों में हाथ,
चुपके से हम निकल लेते,
हर नज़र से बचते बचाते,
दूसरों से नज़रें चुराते,
जैसे ही गुलाबी-सलेटी संध्या को छिपते-छिपाते,
चुरा ले गयी गहरी सुरमई सी,
तारों टंकी, रूपहली रात ही।
मैंने अपने झरोखे से कई बार है देखा,
डूबते सूरज की अद्भुत छटा,
मन की आँखों से देखा है अनेको बार,
दूर देश,सात समुन्दर,तेरह नदियों पार
पहाङों के पीछे जा छुपता,
संतरी सा सूरज का चेहरा,
मानों जैसे सुनहरा सिक्का,
गोल-गोल सा कभी हाथों में मेरे आ बैठता,
जला जाता था मेरी हथेली को,
दे जाता था,कई फफोले वो।
तब मै तुम्हे याद करती थी दिल से,
सच,पूरे मन से,
महसूस करती थी तुम्हे वहीं,
मेरे गले में डाले बाँहें अपनी,
ठंडक सी पहुँचा जाते थे दिलो जान मे,
समा लेते थे मेरी आत्मा को अपने में,
अपने होंठों के चुंबन से पोंछ जाते,
जितने भी मेरे दर्द तुम वहाँ पाते,
रोम रोम मेरा तुमको छू-छू जाता,
तुम ना होते,पर तुमसे आलिंगन बद्ध हो जाता।
कहाँ थे तुम तब?
मुझे ज़रूरत थी तुम्हारी जब,
थे तब तुम किसके साथ?
क्या करते थे मेरी बात
अपने साथी से?
आती थी क्या मेरी भी याद,भूले भटके से?
मै भी तो तुम्हारी दुनिया का हिस्सा हूँ,
तुम्हारे दिल के एक कोने में मै भी तो हूँ,
मेरा दिल तो कभी का तुम्हारा हुआ,
खुद को भी था तुम्हारे हवाले किया।
फिर क्यों मेरे प्यार की दुनिया,सिर्फ मेरी थी!
प्यार की अग्नि में बस मै जलती थी!
जब दिल दुःखी होता था
और तुम्हे आसपास मांगता था,
तब सिर्फ मेरा प्यार मेरे साथ होता,
तुम्हारा साया तक ना कभी करीब होता,
एक मायूस से,मासूम पिल्ले जैसा,
प्यार मेरा,मेरे पैरों के पास आ बैठता,
मानों करता हो ढेरों फरियाद,
बस मन में प्यार पाने की आस।
हर जीवन की शाम तुम्हारा प्यार और कम हो जाता,
जैसे उन पहाङों के पीछे रोज़ सूरज गुम हो जाता,
सांझ की मद्धिम सी रोशनी,
यादों के अक्स पोंछती,
कुछ ज़िन्दा सी तस्वीरें,
सांसें लेती धीरे-धीरे ,
रोज़ मेरी पलकें हैं उन्हें बुहारती,
ज़रा धुंधली सी पङती,पर जीवन में मेरे रंग भरती,
आज भी वह सांझ वहीं है ठहरी,
प्यार भरा दिल लिये,जहाँ मैं अब भी खङी।।
©मधुमिता
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