Friday, 22 July 2016

छब तेरी



पथराई सी आँखें मेरी
ढूढ़ती है सिर्फ तुझको,
रूंधी सी आवाज़ भी 
अब,बुला रही बस तुझको,
मंद पङती धङकनों में 
अब भी बाकी है थाप तेरी,
साँसों की संगीत के
आरोह-अवरोह भी बस तू ही।


खामोशी भी अब शोर मचाती है,
झींगुरों के कलरव को दबाती है,
रात की स्याही तले,
टिमटिमाते से दो नयन मेरे,
तकते द्वार के परे,
मिलन की आस लिये,
जीवन की जीर्ण डोर को थामे,
यूँ ही कट रही मेरी सुबह और शामें ।


घूम आता है मेरा बावरा मन,
फिर-फिर धरती और गगन,
पाने को तेरी एक दरस,
प्यासी धरती सी,रही मै तरस,
सुनने को तेरी पदचाप, 
ले रही साँसें चुपचाप, 
कहीं तेरे कदम,बिन बोले गुज़र जायें,
मुझसे बिन बोले,बतियाए ।


शिथिल सा मेरा बदन,
हर पल मचलता मेरा मन,
तेरी झलक पाने को बस ये दिल धङक रहा है,
बेसब्री से इंतज़ार तेरा,मेरा रोम-रोम करता है,
सूखे से कुछ ख्वाब अभी भी लटक रहे हैं,
मद्धिम पङती साँसें, आस की जाली में अटक रहे हैं,
बंजर से इस मन को कब्रगाह बनने में कुछ ही देर है,
आस की डोरी के चटकने भर की देर है।


आजा कि अब पलकें भी लहुलुहान है,
पत्थर सी आँखों पर झपक-झपक हैरान है,
साँसें भी अब आस का दामन छोङने लगीं,
धङकनें भी अब सुस्त पङ,थके हुए डग भरने लगीं,
जमने लगा है कोशिकाओं में रुधिर,
अस्फुट से बोलों के बीच बंध गये हैं अधर,
अविरल सी धाराओं में बह रहा है मेरा प्यार,
रो-रो कर ये नयन और कितना करें इंतज़ार ।


अब रहम कर इस बुझती लौ पर,
एक हाथ बस अपना रख दे सर्द माथे पर,
संभलती नही हैं साँसें अब,
ना जाने ये साथ छोङ जायें कब,
बंद हो रही ज़ुबां मेरी,सूख गये हैं लब, 
जब मै ना रहूँगी,क्या आयेगा तू तब!
इससे पहले मैं अलविदा कह दूँ,आखिरी झलक दिखा जा,
बंद कर तुझे आँखों में ले जाऊँ मैं,अब तो छब दिखला जा ।।

©मधुमिता

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