माँ मेरी
तुम्हारे हाथ का हर एक छाला,
चुभा जाता है इस दिल में एक भाला,
हर एक रेखा जो तुम्हारी पेशानी पर है,
एक दास्तां बयां कर जाती किसी परेशानी की है,
बता जाती है वो दर्द को,जो सहे तुमने,
हमें लाने इस हसीन जहां में अपने।
उंगलियाँ पकङ चलना सिखाया,
मामा,दादा,बोल बोल देखो खूब बुलवाया,
खाना खाना, नाचना गाना सब सीखे तुमसे,
तंग किया,फिरकी की मानिंद घुमाया,फिर भी ना खीजीं हमसे,
हर रोज़ नयी तैयारी थी,
हम ही तो तुम्हारी फुलवारी थीं ।
क, ख,ग तुमने ही सिखाई,
ए,बी,सी थी तुमने लिखवाई,
कविता पाठ कराती थी तुम,
चित्रकारी की अध्यापिका भी तुम,
हर कला को विकसित किया है मुझमें,
हर गुण तुमसे विरासत में पाई मैंने ।
दिखलाई तुमने सही राह,
मंज़िल अपनी पाने की चाह,
सच की राह पर चलते रहना अटल,
बताया,हर सही बात पर करना अमल
और झूठ को सदा दूर खदेङना,
सदा सच्चाई का दामन ही थामना।
दृढ़ता का तुमने ज्ञान दिया ,
पक्के इरादों का सम्मान किया,
निडर हो आगे बढ़ना सिखाया,
ज़िन्दगी की राह में गिरकर,फिर उठना सिखाया,
सच को सच और झूठ को झूठ बोलने की हिम्मत दी,
हर ग़लत से जूझने की हौसला अफ़ज़ाई की।
आज मैं जो भी हूँ,सिर्फ तुम्हारी वजह से हूँ,
तुम्हारी नज़रों में अपना अक्स ढूढ़ती हूँ,
हाङ मांस से गङी हूँ तुम्हारी,
तुम्हारे खून से ही सींची ये तुम्हारी दुलारी,
तुम्हारे वजूद का हिस्सा हूँ मैं ,
तुम्हारा ही लिखा हुआ किस्सा हूँ मैं।
तुम्हारा खिलाया हर कौर आज भी दौङ रहा मेरी धमनियों में,
तुम्हारी हर सीख कूट-कूट कर भरी है हर रग रग में,
इंसानियत का पाठ पढ़ाया,
हर मुश्किल में मुस्कुराना सिखाया,
जीवन को जीने की अजब कला सिखाकर,
क्या खूब मिसाल बन गई तुम, अपने फर्ज़ निभाकर।
आज एक माँ हूँ मैं भी,
समझती हूँ एक माँ के मन की
चिंता,प्रेम,सोच और प्यार,
जो मांगे ना कोई अधिकार,
माँ,माँ के बोल में ही वह ढूढ़े मान,
है माँ में हर प्रेम,समर्पण और सम्मान ।
तुम्हारा दिया हर कुछ है मेरा,
ये जीवन,साँसें और नाम भी मेरा,
आँचल की छाँव में तुम्हारे,
दोनों जहां हैं मेरे,
मुझसे कभी रूठो जो तुम,
वो दर्द कभी सह ना पायेंगे हम।
मेरे सर पर तुम्हारा खुरदुरा सा हाथ रहे,
हर दुःख में तुम्हारा साथ रहे,
साहस और संयम की तुम प्रतिमूर्ति,
कोई ना कर पाये कभी किसी माँ की पूर्ति,
माँ तो ऊपरवाले की देन है अनूठी,
नही कभी इसमें कोई त्रुटि।
बस इतनी अब चाह है मेरी,
झुर्रियों भरे चेहरे पर तुम्हारी,
सदा मुस्कान खेलती रहें,
धूमिल होती नज़रों में तुम्हारी खुशियाँ बस तैरती रहें,
हर ग़म से कोसों दूर रहो तुम,
यही रब से कहते हम।
आज भी तुम्हारा ही दिया नाम चलता है,
कोशिकाओं में तुम्हारा ही खूं बहता है,
जैसी भी हूँ माँ,मैं हूँ तुम्हारी बेटी,
रब से ये करूँ मैं विनती,
गर और जन्म ले मैं इस जग में आऊँ
हर जन्म में बस,माँ,तुमको ही अपना माँ पाऊँ ।।
-मधुमिता
मातृ दिवस के अवसर पर माँ को समर्पित
तुम्हारे हाथ का हर एक छाला,
चुभा जाता है इस दिल में एक भाला,
हर एक रेखा जो तुम्हारी पेशानी पर है,
एक दास्तां बयां कर जाती किसी परेशानी की है,
बता जाती है वो दर्द को,जो सहे तुमने,
हमें लाने इस हसीन जहां में अपने।
उंगलियाँ पकङ चलना सिखाया,
मामा,दादा,बोल बोल देखो खूब बुलवाया,
खाना खाना, नाचना गाना सब सीखे तुमसे,
तंग किया,फिरकी की मानिंद घुमाया,फिर भी ना खीजीं हमसे,
हर रोज़ नयी तैयारी थी,
हम ही तो तुम्हारी फुलवारी थीं ।
क, ख,ग तुमने ही सिखाई,
ए,बी,सी थी तुमने लिखवाई,
कविता पाठ कराती थी तुम,
चित्रकारी की अध्यापिका भी तुम,
हर कला को विकसित किया है मुझमें,
हर गुण तुमसे विरासत में पाई मैंने ।
दिखलाई तुमने सही राह,
मंज़िल अपनी पाने की चाह,
सच की राह पर चलते रहना अटल,
बताया,हर सही बात पर करना अमल
और झूठ को सदा दूर खदेङना,
सदा सच्चाई का दामन ही थामना।
दृढ़ता का तुमने ज्ञान दिया ,
पक्के इरादों का सम्मान किया,
निडर हो आगे बढ़ना सिखाया,
ज़िन्दगी की राह में गिरकर,फिर उठना सिखाया,
सच को सच और झूठ को झूठ बोलने की हिम्मत दी,
हर ग़लत से जूझने की हौसला अफ़ज़ाई की।
आज मैं जो भी हूँ,सिर्फ तुम्हारी वजह से हूँ,
तुम्हारी नज़रों में अपना अक्स ढूढ़ती हूँ,
हाङ मांस से गङी हूँ तुम्हारी,
तुम्हारे खून से ही सींची ये तुम्हारी दुलारी,
तुम्हारे वजूद का हिस्सा हूँ मैं ,
तुम्हारा ही लिखा हुआ किस्सा हूँ मैं।
तुम्हारा खिलाया हर कौर आज भी दौङ रहा मेरी धमनियों में,
तुम्हारी हर सीख कूट-कूट कर भरी है हर रग रग में,
इंसानियत का पाठ पढ़ाया,
हर मुश्किल में मुस्कुराना सिखाया,
जीवन को जीने की अजब कला सिखाकर,
क्या खूब मिसाल बन गई तुम, अपने फर्ज़ निभाकर।
आज एक माँ हूँ मैं भी,
समझती हूँ एक माँ के मन की
चिंता,प्रेम,सोच और प्यार,
जो मांगे ना कोई अधिकार,
माँ,माँ के बोल में ही वह ढूढ़े मान,
है माँ में हर प्रेम,समर्पण और सम्मान ।
तुम्हारा दिया हर कुछ है मेरा,
ये जीवन,साँसें और नाम भी मेरा,
आँचल की छाँव में तुम्हारे,
दोनों जहां हैं मेरे,
मुझसे कभी रूठो जो तुम,
वो दर्द कभी सह ना पायेंगे हम।
मेरे सर पर तुम्हारा खुरदुरा सा हाथ रहे,
हर दुःख में तुम्हारा साथ रहे,
साहस और संयम की तुम प्रतिमूर्ति,
कोई ना कर पाये कभी किसी माँ की पूर्ति,
माँ तो ऊपरवाले की देन है अनूठी,
नही कभी इसमें कोई त्रुटि।
बस इतनी अब चाह है मेरी,
झुर्रियों भरे चेहरे पर तुम्हारी,
सदा मुस्कान खेलती रहें,
धूमिल होती नज़रों में तुम्हारी खुशियाँ बस तैरती रहें,
हर ग़म से कोसों दूर रहो तुम,
यही रब से कहते हम।
आज भी तुम्हारा ही दिया नाम चलता है,
कोशिकाओं में तुम्हारा ही खूं बहता है,
जैसी भी हूँ माँ,मैं हूँ तुम्हारी बेटी,
रब से ये करूँ मैं विनती,
गर और जन्म ले मैं इस जग में आऊँ
हर जन्म में बस,माँ,तुमको ही अपना माँ पाऊँ ।।
-मधुमिता
मातृ दिवस के अवसर पर माँ को समर्पित
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