ध्रुव तारा
मै अपने कमरे मे बैठी थी। परेशान -कुछ बातों के अर्थ ढूढ़ने की कोशिश मे। जितना मै सोचती उतनी ही तेज़ी से मेरी कुरसी हिलने लगती और पेशानी पर पसीने की कुछ और बूंदे उभर आतीं।
रसिका दीदी मुझे छोङकर चली गयीं थी उस दिन,हमेशा हमेशा के लिए ।मेरा बालमन इस बात को स्वीकारने को बिल्कुल भी तैयार ना था।ऐसे लगता था बस यहीं तो हैं वो,कहीं मेरे आसपास । बस अभी आएंगी और कहेंगी ," उठो देखो बाहर कितने फूल खिले हैं ।चलो चित्र बनाते हैं ।"
मेरी नज़र बरबस ही एक तस्वीर पर चली गई, जिसमें उन्होंने प्यार से मुझे जकङ रखा था और एक प्यारी सी मुस्कान उनके होंठों पर खेल रही थी।मुझे अपनी छोटी बहन मानतीं थीं।हर समय मेरा साथ देने को बेताब, मेरा ही क्यों कितनों की मदद किया करती थीं वो।
आज भी मुझे वह दिन याद है -मै छोटी सी, डरी सहमी हुई नये स्कूल जा रही थी। बस स्टाॅप पर माँ छोङने आईं थीं । छूटते ही एक सुंदर सी, लम्बी-लम्बी चोटियों वाली दीदी ने मेरा हाथ थामा और बोलीं, "आंटी मै रसिका।आज इसका फर्स्ट डे है? कोई बात नही मै ध्यान रख लूंगी। क्या नाम है ? विच क्लास? " माँ ने भी मुस्कुराते हुए उनकी सारी बातों का जवाब दिया और तसल्ली से मुझे उनके हवाले कर चली गईं ।
स्कूल में मुझे मेरे क्लास तक ही नही छोङा बल्कि कुछ बच्चों से मेरी पहचान भी करवाई।टिफिन टाईम में भी मिलने आईं और बाद में मुझे बस से भी उतारा ।
शाम को मैं घर के गेट पर खङी होकर बाहर पार्क में खेलते बच्चों को देख रही थी । हम शहर में नये आये थे और अभी काॅलोनी के बाकी बच्चों से मेरी पहचान नही थी।तभी रसिका दीदी गेट के सामने आ खङी हुईं ।"अरे मधु तुम अकेली क्यों खङी हो? चलो सबके साथ खेलो।आओ मै तुम्हे सबसे मिलाती हँ", और मेरा हाथ पकड़ कर मेरा परिचय सब बच्चों से करवाया।इस तरह मेरी कई मित्रताओं की सूत्रधार रसिका दीदी ही थीं ।
मेरा कोई ऐसा दिन नही जाता, जिसमें मुझे उनकी ज़रूरत ना पङती।माँ भी उनकी मम्मी से बङी बहन जैसा स्नेह करने लगीं थीं ।
हर चीज़ में मुझे प्रोत्साहित करने का मानों दीदी ने बीङा उठा लिया था।
मैं गाती अच्छा थी,आवृत्ति भी अच्छी करती थी। रसिका दीदी हर प्रतियोगिता में मेरा नाम लिखवातीं, जमकर प्रैक्टिस करवातीं और मेरे जीतकर आने पर और जमकर नाचतीं। हाँ कुछ भेंट भी अवश्य लातीं अपनी मम्मी के साथ ।
उनको फोटोग्राफी का शौक था ।सारा दिन किसी ना किसी तस्वीर को कैमरे में कैद करती रहतीं ।उन्हीं के कैमरे से मैने पहली तस्वीर ली थी उनकी। हालांकि ज़्यादा अच्छी नही थी,पर उन्होंने खूब तालियां बजाई थीं।उनके साथ रहकर मेरे चरित्र का और मेरे गुणों का भरपूर विकास हो रहा था । माँ भी बहुत खुश थीं ।कहतीं मेरी तो दो बेटियाँ हैं।बङी ने छोटी का हाथ थाम रखा है ।मैं भी एक छोटे से पिल्ले की भांति उनके पीछे पीछे घूमती रहती ।
मै चित्रकारी ठीकठाक कर लेती थी,पर रंग भरते हुए सारा गुङ-गोबर हो जाता था ।एक प्रतियोगिता आने वाली थी और मैं भाग लेना चाहती थी।मेरी कक्षा में जो अच्छी चित्रकारी करती थी,उसने मेरा मज़ाक उङाया और बोली कि मै नही जीत सकती।मै खूब रोई। घर जाकर भी मेरा रोना जारी रहा।शाम को दीदी आईं और जो उन्होंने कहा वह सब मैंने आजतक गांठ बांधकर रखा है । पहले तो उन्होंने मेरे आँसू पोंछे,फिर कहा कि," रोती रहोगी तो भाग कैसे लोगी।"
उस दिन उन्होंने मुझे अपनी खुद की पहचान बनाने का महत्व समझाया।बोलीं कि लोगों के कहने से कुछ नही होता । होता है तो अपनी इच्छा शक्ति और मेहनत से और ना जाने कितने नाम गिना दिये जिन्होंने अपनी लगन,इच्छा शक्ति और मेहनत से अपनी अलग पहचान बनाई और कामयाबी पाई।बाकी मुझे तो सिर्फ रंग भरने पर मेहनत करनी थी। उस वक्त मुझे कुछ ज़्यादा तो समझ नही आया था पर मेहनत वाली बात मेरी समझ में आ गई थी ।
अगले दिन रसिका दीदी के ये कहने पर," भाग तो लो प्रतियोगिता में ।वह भी तो बहादुरी का काम है।हारना जीतना ही सिर्फ मायने नही रखता।जीत मेहनत और उस भावना,उस लगन की होती है", मै जाकर अपना नाम लिखवा आई।फिर शुरू हुई मेरी मेहनत।रोज़ अलग अलग चित्र बनाती और रंग भरती।पहले दीदी को दिखाती,फिर आर्ट टीचर को।धीरे धीरे मेरी कला निखरने लगी।टीचर भी बहुत खुश थीं ।
धीरे धीरे प्रतियोगिता का दिन भी आ गया।पूरे भारत से बच्चे भाग ले रहे थें।मै भी पहुँची।कोई डर,कोई ख़ौफ़ नही,बल्कि आत्मविश्वास से भरी हुई ।टॉपिक दिया गया और मै अपने चित्र में डूब गई।समय खत्म हुआ तो देखा काफी लोग मेरे चित्र की फोटो ले रहे थे ।लगा ठीक ही बना होगा ।घर वापस आई,सबको बताया और धीरे धीरे भूल गयी।चित्रकारी पर जारी रही।
दो महीने बाद एक दिन प्रार्थना के समय प्रिंसिपल ने कहा कि उनको एक महत्वपूर्ण उदघोषणा करनी है। फिर उन्होंने जो कहा उससे मैं भौंचक्की रह गई ।चारों ओर तालियों की गूँज थी और मेरी आँखों में आँसू ।मेरी नज़रें रसिका दीदी को ढूंढ रहीं थीं। उनसे गले मिलकर उनको बताना चाहती थी कि मै सर्वप्रथम आई थी ।उनकी छोटी सी बहन ने उनकी बात मानी थी और अव्वल आ गई।दीदी उस रोज़ स्कूल नही आईं थीं। उनके बोर्ड की परीक्षा भी निकट थी,शायद इसीलिए।
किसी तरह समय काटा दिनभर। छुट्टी हुई,बस में बैठी,घर पहुँची।घर पर माँ नहीं थीं।पता चला रसिका दीदी के यहाँ हैं।मै निकलने को तैयार ।मुझे रोकने की कोशिश की गई, पर मै कहाँ रुकने वाली थी।भाग ली दीदी दीदी करते।गेट खोलकर अंदर घुसी।अंदर लोगों का जमावङा।धक्का मारकर आगे निकली तो दृश्य देख मेरे शब्द गले में ही घुट गये।सामने दीदी नीचे लेटी हुई थीं,ऊपर उनके सफेद कपङा था,आँखें बंद, निष्क्रिय सा शरीर । सब रो रहे थे।माँ को देख उनके पास गयी,उनसे पूछा तो पता चला कि सुबह दीदी को कुछ साँस लेने में तकलीफ हो रही थी । हस्पताल ले जाया गया,वहाँ डाॅक्टर कुछ समझ पाते,उससे पहले ही वो इस दुनिया को छोड़ गयीं थीं।
मै रोती हुई भागी और अपने कमरे में बंद हो गई ।मेरी सोच मेरा साथ नही दे रही थी।क्यों चली गईं दीदी।भगवान ने उन्हें क्यों बुला लिया।मैं तो उनके साथ खुशी बंटना चाहती थी,जो उन्हीं की देन थी।जितना मैं सोचती,उतना ही उलझती जा रही थी।तभी मुझे उनकी कही बात याद आई -"कुछ भी हो जाए,कभी घबराना नही,चाहे कोई साथ हो या नही, बस आगे बढ़ते जाना।"
हाँ अब मुझे आगे बढ़ना था,उनके बताए रास्ते पर चलकर,उनकी कही बातों को अपनाकर। उन्होंने मुझे कहानी सुनाते हुए कहा था कि जो इस दुनिया से चले जाते हैं वे सब तारा बन जातें हैं ।मैं उठी और अपने आँसू पोछें,फिर कभी ना रोने के लिए,क्योंकि दीदी को हँसते मुस्कुराते लोग अच्छे लगते थे।
रसिका दीदी भी अब एक तारा बन गयीं थीं-"ध्रुव तारा"!!! मुझे राह दिखाती,मुझे मेरे मंज़िल की ओर ले जाती मेरी अपनी "ध्रुव तारा"।।
-मधुमिता
Superb and very touching. Proud of you MADHUMITA and I wish you come out with more such gems regularly. Mera naman hai tumhare iss prayas ko aur dher shubh kamnayein ki tum safalta ki anek payedaan charho. Feeling so good and captivated with your lekhan shaili. God bless you always and may you ascend to astronomical heights.
ReplyDeleteHugs Paaji
DeleteLove you for such motivating words
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteThese were my honest comments without taking into consideration that I know you. Again I say that you have that quality which many writers lack. Bravo and way to go.
ReplyDeleteThese were my honest comments without taking into consideration that I know you. Again I say that you have that quality which many writers lack. Bravo and way to go.
ReplyDelete