Tuesday, 10 May 2016

अकेला 



जीवन के सफर में अकेला हर शख्स यहाँ,
हर छोटे बङे रस्ते पर अकेले ही चला जा रहा,
अक्स बहुत हैं बिखरे इधर,
पर अपना ही अक्स सिर्फ दिखे जिधर,
आजू-बाजू, पीछे -आगे ,
कहीं भी जाये,कहीं भी भागे,
मीठी बोली कई यहाँ बोले,
कोई नही जो साथ होले,
जो आगे बढ़कर थामे हाथ,
कोई नही जो चल दे साथ ।

कोई नही जो सुने व्यथा,
ना कोई जो प्यार से चूमे माथा,
कोई नही जो सपने दिखाए, 
उन राहों पर आगे ले जायें,
कोई नही जो जगाए आस,
आकर बैठे उसके पास, 
कहे चलो आओ दु:ख बांटे,
मिलजुल कर ये दिन काटे,
हर कोई सोचे बस अपना,
अपनी ही मंज़िल,अपना सपना।

हर कोई यहाँ देखे अपना स्वार्थ,
ना करे कोई यहाँ परमार्थ, 
राम नाम की गाथा गाये,
पर मनुष्य जन का ना साथ निभाये,
आगे बढ़ने की लगी है होङ,  
धक्का-मुक्की,अंधी दौङ,
मेरा मेरा करता रहता है, 
पर अंत में खाली हाथ जाता है,
फिर भी क्यों ना एक दूजे के हो,
क्यों ना एक दूसरे का साथ दो।
  
चल रे मना अब तू भी हो जा तैयार,
कोई नही यहाँ अपना यार,
कोई जो तेरी खुशियों में खुश हो ले,
कोई ऐसा,जो तेरे ग़म संजो ले,
जो हाथ पकङ कर ले चले आगे,
थामकर वक्त के धागे, 
हर कोई यहाँ अपने में खोया,
किसी को क्या,जो तेरा दिल है रोया,
कोई नही रिश्तों का मोल,
अब तो अपनी आँखें खोल ।

अब ना कर किसी का इंतजार,
ना रूला इन आँखों को बारबार,
अकेले ही चलता चल, 
हर रोज़,आज और कल,
हिम्मत कर और बढ़ आगे,
और तेरे अहसास सारे  जागे, 
अकेले चलना ही तेरी तकदीर है पथिक,
और कुछ की इच्छायें ना रख अधिक, 
देख हर कोई अकेले ही चला जा रहा, 
जीवन के सफर में अकेला हर शख्स यहाँ ।।  

-मधुमिता

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