Friday, 6 May 2016

कैसे!!

आसमां, बहुत है पास मेरे,
कठोर बहुत हैं हवाओं 
के थपेङे, निष्फल करती मेरे
हर उस कोशिश को, मानो 
मुझे रोकना ही, उसका
एक मात्र ध्येय ये तुम जानो।

उङ सकती हूँ इस दुनिया से 
कहीं परे,जहाँ गले मिलूँ
मैं कोमल,धवल बादलों से,
खूब करूँ अठखेलियाँ
उनसे,तोङ सारे बंधन,
तोङ कर सब बेङियाँ।

सुनहरे से कुछ सपनें हैं 
इस जहां के पार,
जिनको पाने में है
पूर्णता मेरे अंतर्मन 
की,हर कोशिश पर जारी 
है,करने को मेरे मन का दमन।

हर कोई मुझको रोक रहा है 
देकर प्यार का वास्ता,तो कोई हक 
से, मेरी ख्वाहिश को टोक रहा है,
दामन में है प्यार सभी का,
कैसे तोङूँ दिल सबका
और पा लूँ अपने मन का।

दिल में ऊँचे उङने की चाहत बहुत है, 
आँखों में गगन से मिलने के सपने, 
नीचे बहुत से रंग बिखरे हैं, 
जो खींच लेते मुझे अपनी ओर,
पर मन मेरा व्याकुल बहुत है,
छूने को नीले आसमान का छोर।

झिनी सी रेशम की जाली सी,
मोह माया के इस महिन
झरोखे में से,मैं तितली सी,
निकलूं तो निकलूं कैसे
समझ ना पाऊँ!नाज़ुक से मेरे पंख 
फैलाकर,अासमांओं को छू लूं ,तो कैसे!!

-मधुमिता

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