Sunday, 15 May 2016

हाँ मुझे है प्यार 



क्या मै तुमसे करती हूँ प्यार,
हाँ प्यार है, या है इनकार, 
बङी ही उलझन में पङ गयी हूँ , 
क्यों तय कर नही पा रही हूँ ,
कभी लगता है करती हूँ प्यार, 
कभी लगे,शायद नही है अब इकरार,
और इसी हाँ-ना के फेर में, 
आनाकानियों के हेर में, 
मैं काफी सारी दूरी तय कर आयी,
तुम्हें प्यार करने से,ना करने तक आ गयी,
दिल मेरा नर्म से पत्थर का बना जाता है,
खूं मेरा गर्म से सर्द सा  हुआ  जाता है ।

क्या मैं तुम्हारा करती हूँ इंतज़ार,
हो के बेचैन और बेकरार,
शायद हाँ! नही!शायद ना,
मुझे नही है अब फर्क पङता,
चाहे तुम आओ,चाहे ना आओ,
मेरे पास ना आकर,कहीं भी जाओ,
मेरा दिल अब हो चुका बेज़ार, 
बेवजह,यूँ ही बैठी बेकार 
में,देखती तुम्हारी राह, 
निकलती हर आस बनकर आह,
हर आह अब बन जाती  है  इक शोला,
जो हमारे रिश्ते के हर तार को, जाती है जला।

क्या वाकई में मै तुमसे करने लगी हूँ नफरत?
क्या नही मुझे अब तुमसे उल्फ़त! 
या सिर्फ तुमसे ही करती हूँ मुहब्बत;
और इसी बात की है बौखलाहट, 
कि करती हूँ प्यार तुमसे और सिर्फ तुम्ही से,
जब दरकिनार कर दिया मुझे,तुम्ही ने तुमसे,
करना चाहती हूँ नफरत तुमसे जी भरकर,
देखना चाहती हूँ प्यार को नफरत से तौल कर, 
पर ये निष्ठुर प्यार पर जाता है भारी, 
हर नफरत की भावना है इससे हारी, 
तुम्हारे प्यार में बनी जा रही मैं बिल्कुल अंधी, 
दूजे तरफ आग की मानिंद, फैली जा रही नफरत की आंधी । 

इस अंतहीन सी कहानी में, 
अकेली बस दीवानी मैं, 
कैसे खुद को मैं करूँ  शांत, 
कैसे लूँ ख़ुद के ग़म मैं बांट, 
ऐसे ही तृष्णा में तङपती रहूँगी, 
अधबुझी सी आग में सुलगती रहूँगी, 
प्यार और नफरत के पशोपेश में, 
बेदर्द अहसासों के आग़ोश में, 
दिल मेरा तंग हुआ जाता है, 
हाँ-ना की उलझती गुत्थी में, दंग हुआ जाता है , 
इस बिचारे से दिल को,मैं,किस तरह समझाऊँ, 
क्या-क्या गुज़र रही मुझपे,मैं इसको क्या कुछ बताऊँ !

मेरे तुम्हारे इस बेमेल से मेल में, 
मुहब्बत और नफरत के अंधे खेल मे,
आखिर में गयी, मैं ही हार,
रोएँ मेरी आँखें खूं के आँसूं हज़ार, 
मिली मुझे प्यार करने की सज़ा, 
क्या यही थी ऊपरवाले की रज़ा? 
कठोर बन गयी इस कदर क्यों मेरी नियती, 
क्या शिकायत करूँ,शायद यही है उसकी प्रकृति, 
यहाँ मैं जीते हुये भी, हर पल मरूँगी, 
फिर भी तुमसे ही प्यार करती रहूँगी, 
तुम्हारा प्यार दिल में लिये, मैं जीती जाऊँगी,
खून,मांस,धङकनों की बनी,चाहे मुर्दा कहलाऊँगी।।

-मधुमिता 






No comments:

Post a Comment