Wednesday, 24 January 2018

जब धड़कनें टकराईं थीं...



जब मेरे हाथों ने तुम्हारे हाथों को छुआ था,
जब धड़कनें टकराईं थीं,
दिल मेरा तब उड़ चला था
आसमां को छूने,
नन्हे, महीन, कोमल पंखों पर,
एक अनंत नील से
मेघ विहीन आसमान तक
पहुँच गयी थी मै,
सबने कहा, सब  झूठ है,
झूठ की बुनियाद पर बना,
झूठ से गढ़ा,
भावनायें मेरी धूमिल पड़ जायेंगी,
कहा सबने,
जलेगी ज्वाला 
राग और अनुराग की,
आवेश, वासना की,
अभिलाषाओं की पूर्ति में 
कई राह बदलेंगे,
बदलेंगे रिश्ते कई,
कितना सच सब कह गये थे,
कितना कुछ तो बदल गया देखो!
क्या मुमकिन है सब पीछे छोड़ पाना
और प्रेम डगर पर आगे बढ़ जाना?
हाँ, सच्चा प्यार तो सब बदल सकता है, हैना!
हिम्मत भी तो दे जाता है कितना,
पर्वतों को तोड़, नदियों की धारायें बदल देता है,
अपनी उष्णता से कोयले को भी बना जाता है हीरा,
प्यार बाँध सकता है चंचल हवाओं को,
या थाम सकता है उस नटखट सी पुरवाई को
अपने आलिंगन में, 
हाँ, प्यार ही तो है
और सब सच है,
मेरी अनुभूति, मेरे अहसास वही हैं,
बिल्कुल वैसे ही 
जब मेरे हाथों ने तुम्हारे हाथों को छुआ था,
जब धड़कनें टकराईं थीं
और दिल मेरा तब उड़ चला था
आसमां को छूने,
नन्हे, महीन, कोमल पंखों पर,
एक अनंत नील से
मेघ विहीन आसमान तक
जब पहुँच गयी थी मै ।।
 
©®मधुमिता

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