Monday, 1 January 2018

नया साल




देखता क्यों है यूँ अचरज से
इन सजी-धजी अट्टालिकाओं को,
रंग-बिरंगे मुखौटो में सजे
नकली से इन चेहरों को,
कान क्यों थक रहे हैं तेरे
सुनकर, कोई झूठी हंसी, 
खिलखिलाते भ्रम देख ना!
देख लुभावने धोखे भी,
 ये तेज़ दौड़ती मोटर गाड़ियाँ 
और चौंधियाती रोशनी उनकी,
देख ना! कितने सपने सजाती है,
कुछ नशीली धुनें ,
कहीं धुन नशे की,
जिस्मों को थिरकाती है, 
किसी नये जहाँ ले जाती है,
नया साल है बे!
चल उठ ले,
फटे पर एक पैबंद लगा ले,
चल तू भी ज़रा मुस्कुरा ले,
झूठा ही सही,
पर तू भी ज़रा सा जी जा रे,
आजा नये साल को मना ले।।😊😊

©®मधुमिता

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