बसंत
पुरवाई संग सुर मिलाते, अनेकों तान औ राग,
झूम- झूमकर खेतों में, सरसों खेले फाग,
नटखट, पगली सी हवा देखो थिरक रही हर ओर,
थाम रही उसको, कैसे देखो, मतवारी पतंग की डोर,
किरणों की रेशमी चादर ओढ़े, सूरज मंद मंद मुस्कुरा रहा,
गुलाबी, पीला, लाल दुशाला ओढ़े इतरा रही कैसे धरा!
सजा है बेहिसाब रंगों का खेला,
सपनों की दुनिया का मेला,
टेसू का परचम लहराया,
हरा नीम भी गदराया,
मोती सम,चमकते, नन्हे, आम के बौर,
तितली रंग-बिरंगी,फिरती, कभी इस ठौर, कभी उस ठौर,
कहीं पेड़ से लिपटी लता ऐंठती,
कहीं नव किसलय दल में से, कोयल है कूकती,
मदहोश सा ये पवन बावरा,
आँख-मिचौली खेलता, बादल साँवरा,
धधके गुलाबी सी आग,
मोह, प्रेम और अनुराग,
अठखेलियाँ करता ये दिल बार-बार,
प्रेम रंग समेटे बेशुमार,
रेशमी सपनों की फिर दुनिया सजी है,
देखो, धरती फिर बसंत से सजी है।।
©®मधुमिता
पुरवाई संग सुर मिलाते, अनेकों तान औ राग,
झूम- झूमकर खेतों में, सरसों खेले फाग,
नटखट, पगली सी हवा देखो थिरक रही हर ओर,
थाम रही उसको, कैसे देखो, मतवारी पतंग की डोर,
किरणों की रेशमी चादर ओढ़े, सूरज मंद मंद मुस्कुरा रहा,
गुलाबी, पीला, लाल दुशाला ओढ़े इतरा रही कैसे धरा!
सजा है बेहिसाब रंगों का खेला,
सपनों की दुनिया का मेला,
टेसू का परचम लहराया,
हरा नीम भी गदराया,
मोती सम,चमकते, नन्हे, आम के बौर,
तितली रंग-बिरंगी,फिरती, कभी इस ठौर, कभी उस ठौर,
कहीं पेड़ से लिपटी लता ऐंठती,
कहीं नव किसलय दल में से, कोयल है कूकती,
मदहोश सा ये पवन बावरा,
आँख-मिचौली खेलता, बादल साँवरा,
धधके गुलाबी सी आग,
मोह, प्रेम और अनुराग,
अठखेलियाँ करता ये दिल बार-बार,
प्रेम रंग समेटे बेशुमार,
रेशमी सपनों की फिर दुनिया सजी है,
देखो, धरती फिर बसंत से सजी है।।
©®मधुमिता
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