निस्तब्ध
अंजान सी,
सुधबुध खोई,
ना अपना, ना पराया कोई,
अदृश्य सी शांति है,
जीवन की भ्रांति है,
ना संचार,ना चाल,
थम गया मानो समय और काल,
अधखुली पलकों से झांकते कुछ पुराने दिन,
बंजर, सूखे से, खुशियों बिन,
दरस की प्यासी उस अनंत की,
सांसें डोर खींचती अंत की,
कुछ ढूंढ़ती,
कुछ खोजती,
आकुल
और व्याकुल,
कुछ छोड़ती सी,
सब कु खोती सी,
नि:शब्द,
निश्चेष्ट और निस्तब्ध।।
©®मधुमिता
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