नारी
शांत पर अस्थिर भी,
अव्यस्त फिर भी निरंतर व्यस्त हूँ,
निर्भीक फिर भी हर पल त्रस्त हूँ,
विनीत और उद्धत भी,
परतंत्र पर स्वतंत्र भी,
संक्षेप हूँ, विस्तार हूँ,
सविकार और निर्विकार हूँ,
निर्बल हूँ ,
फिर भी सबल हूँ,
अपवित्र और पवित्र भी,
प्रलय और सृष्टि भी,
बंधन हूँ, मुक्ति भी,
यथार्थ और कल्पित भी,
कल हूँ, आज हूँ,
दिन हूँ, रात हूँ,
गगन भी मै,
पृथ्वी भी मै,
मै लघु हूँ,
मै गुरु हूँ,
गद्य मे मै,
पद्य मे मै,
श्यामा हूँ,
दुर्गा हूँ,
मै आदि हूँ ,
मै ही अंत हूँ,
तृप्ति और तृष्णा हूँ,
सत्य और मृगतृष्णा भी,
खाली सी पर भरी हूँ मै,
हाँ! नारी हूँ मै ।।
©®मधुमिता
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