Thursday, 10 August 2017


शायर से मुहब्बत 


कभी किसी शायर के मोह मे मत पड़ना,
कभी दिल ना लगाना,
ये ढाल बन दिल में पनाह देते हैं,
कभी कोई भेस बदल, कई स्वांग रचते हैं,
कभी खुद में समेट ले चलते हैं दूर देस को,
दिल के राज़ सारे बता डालेंगे सब तुमको,
खालीपन सारा तुम्हारा भर जायेंगे,
पर तुमको ही तुमसे छीन ले जायेंगे।

हर किस्सा उनका,
हर लफ़्ज़ उनका,
मानो कोई माया जाल हो,
जिसमे फिरते तुम बेहाल हो,
हर अंतरे में शामिल एक सुंदर मुखड़ा,
मुखड़ों में छुपाये धरती,सूरज, तो कभी चाँद का टुकड़ा,
कभी दोज़ख़, कभी जन्नत, 
तो कभी ले आये पूरी कायनात। 

दीवाने ये,
मचलते परवाने ये,
तड़पते,
बहकते, 
कुछ टूटे से,
कहीं छूटे से,
मदहोश और बेख़बर,
लफ़्ज़ों के ये जादूगर। 

कभी किसी शायर से ना करना मुहब्बत, 
अपनी आँखों में ना बसाना उनकी सूरत,
बन जाओगे फिर हिस्सा उनके सुख का,
कभी अनंत दुख का,
मिलेगी फिर ग़मों की हिस्सेदारी,
निभाते रहोगे फिर ज़िम्मेदारी,
उन्हे सीने में छुपाकर खो जाने की,
किताबों के पन्नों में कहीं गुम हो जाने की।।

©®मधुमिता
  

  

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