गर मुझे किसी भी वक्त पता चल जाये...
उस आख़िरी पल का,
लम्हे का,
आख़िरी उस साँस का,
तो बता जाऊँगी मैं तुम्हे मेरी मुहब्बत का
जो यूँ ही बरकरार रहेगी,
वक्त के पार,
हमेशा हमेशा,
सदियों तलक,
ज़िन्दगी के उस तरफ,
मौत की ज़मीन पर भी,
इश्क मेरा ज़िन्दा रहेगा।
गर मुझे किसी भी वक्त पता चल जाये
कि वही वह लम्हा है
जब मै तुमसे आख़िरी बार मिल रही हूँ,
देख पाऊँगी अब तुमको और नही,
तो यकीन जानो,
लाखों तस्वीरें तुम्हारी
इन दो आँखों में कैद कर
ले जाऊँगी साथ अपने,
खुद के लिये,
देख लूँगी पल पल तस्वीर तुम्हारी,
ज़िन्दा रखूँगी इन नज़रों में ,
मुहब्बत अपनी, हमेशायगी तलक।
गर मुझे किसी भी वक्त पता चल जाये
कि आवाज़ तुम्हारी,
कानों को मेरे
आख़िरी बार सहला रही है,
तो सच कहती हूँ
बड़े ग़ौर से मै तुमको सुन लूँगी,
कसम से एक भी कतरा
अश्क का नही गिरेगा,
ना इन हथेलियों पर,
ना सीने पर तुम्हारे,इस दिल मे अल्फाज़ तुम्हारे
मुहब्बत भरे, मै ले चलूँगी।
गर मुझे किसी भी वक्त पता चल जाये
गर मुझे किसी भी वक्त पता चल जाये
कि बस अब और तुम्हे
मै छू ना पाऊँगी,
उस लम्स को,
हर उँगली को,
महसूस करूँगी
जी भरकर,
उस अहसास को जी लूँगी,
बाँहों मे भर लूँगी तुम्हे,
एक आख़िरी बार
हकीकत को थाम लूँगी,
मुहब्बत में थम जाऊँगी वहीं।
गर मुझे किसी भी वक्त पता चल जाये
कि दिल मेरा आख़िरी बार धड़क रहा है,
उस धड़कन पर खूब मचलूँगी,
बहकूँगी,
रूह में जज़्ब कर हर अहसास
और जज़्बात,
खूँ मे इश्क का रंग समेट,
शुकराना उस ख़ुदा का करूँगी,
जिसने तुमसे मिलवाया,
रंग-ए-मुहब्बत मे रंगवाया,
बाँहों मे तुम्हारी ये नज़रें बंद कर,
इश्क में फ़ना हो जाऊँगी।।
©मधुमिता
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