ऋतु बसंत की
ठंडी हवाओं में ऊष्मा का अहसास,
सर-सर बहती हवाओं में, मीठी सी थाप,
सर्द पाले की छाती को चीर,
मुस्कुराती ओस की बूंद,
बांझ सी ठूंठ के गर्भ से फूटते
नवीन कोंपल,
नव किसलय दल,
रंगबिरंगी फूलों का खिलना,
गुनगुन करते भौरों का मचलना,
इतराती, शोख तितलियाँ,
शीत निद्रा से जागते,
उड़ते फिरते पशु पक्षी,
शीतकाल की ठिठुरती शांति जब
बन जाती मधुर गीत,
धरती हुई हरी भरी, लहलहाती,
हरी घास भी सुनो खुशी से खिलखिलाती,
सुनो बसंत के पदचाप को,
कोमल, मधुर, पायल की झंकार सी,
अपने आँचल को फहराकर
रंगीनियाँ फैलाती,
रुमानी सी,
खुशियों की पिटारी,
रंगीन, रसीली,
थोड़ी चुलबुली,
प्रजननक्षम,
ऋतु बसंत की ।।
©मधुमिता
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