चाहत...
चाहा मैने तुझे सदा
हर सूरत में,
बिना वजह,
बेइंतहा,
फिर भी चाहत मेरी काफी ना हुई
तेरे दिल में जगह पाने को,
जज़्बात कुछ जगाने को,
कुछ सूखे, सर्द दिनों में,
कुछ नर्म, गर्म रातों में,
फिर भी इश्क मेरा, साकिन।
मुहब्बत मेरी,
तेरे लिए ठहरी हुई
सज़ा ओ सामान,
हमेशा-हमेशा,
हमेशगी तलक,
स्याह रातें और
सुनहरे दिनों के सफ़र मे,
कुछ मीठी सी,
कुछ बचकानी सी मुहब्बत,
फिर भी कमबख़्त ज़िद्दी सी।
मेरी मुहब्बत बहती है
लगातार,
गहरे सुर्ख़ जाम की तरह,
तेरे लबों को छूने को बेताब,
जज़्बों के चश्मे से बहती,
सुर्ख़ लाल के पत्थर सी
चमकती, दमकती,
बस तेरी तव्वजो पाने को,
किसी जादू के होने के इंतज़ार में
उम्मीद और आस लिए ।
तू क्या मेरे इश्क को बरबाद करेगा,
इश्क मेरा बरबादी के ना काबिल है,
कितनी भी तू कोशिशें करले,
या करे नज़र अंदाज़,
आशिकी मेरी ज़िन्दा रहेगी,
बाक़ैद हयात,
ये कल्ब मेरा धड़कता रहेगा,
रूह मेरी ताकती रहेगी हर पल तेरा रास्ता
और मासूम सा दिल मेरा एक दिन,
खुशियों से नाच उठेगा, सुरूर से, शादमान ।।
©मधुमिता
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