Wednesday, 22 February 2017

बूँदें 




कुछ नटखट सी,
चुलबुली सी,
धरती के सीने पर थिरकती
बारिश की बूँदें,
ना जाने कितने राज़ छुपाये,
कितने रहस्य ख़ुद में समेटे
एक पहेली, 
ख़ामोश सी हलचल ।


धीमे-धीमे, हौले-हौले,
कभी टूटते,कभी फूटते,
सुखी धरती की छाती पर विसर्जित,
विसारित,
धंसतीं, 
धसकतीं, 
धीमे पड़ती,
हर अणु न्यौछावरती ।


कभी रिसती,
कभी टपकती,
एक दूजे के पीछे चलती सी,
शांति से मचलती,
जलतरंग की तर्ज़ पर,
थामे बादलों के अल्फ़ाज़ों की डोरी,
धरती अम्बर को पुचकारती, 
सीनों की आग बुझा जातीं ।


असंख्य जीवन में प्राण फूंकतीं,  
धरती को सारगर्भित करती,
अर्थपूर्ण, 
भावपूर्ण, 
अनोखी रागिनी,
मधुरम काव्य, 
आर्द्रता से छुती,  
शीतल सी ठंडक पहुँचाती ।


बूँदों का निर्मल तराना,
स्वर माधुर्य से से ओत प्रोत गाना,
श्यामल से नीरद दल, 
चुपके से झाँकता सूरज सोनल,
हवा के गीले आँचल में 
छुपे हुए शुभ्र मोती से,
खुसफुसाते,दे जातें कई इंद्रधनुषी गीत,
सजा जाते हैं इंद्रधनुषी स्वप्न अनगिनत ।।

©मधुमिता

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