Wednesday, 29 March 2017

बिना तेरे हाथों को थामे....




कोशिश तो थी तेरे संग चलने की,
चल पङी हूँ मैं अब बिना तेरे हाथों को थामे ।
अंधेरे डराते तो बहुत हैं ,
पर जला लेती हूँ मै मनमन्दिर मे दिया,
हवा के थपेड़े भी धकेलतीं हैंं नीचे,
चुपके से आ जाती हूँ मै फिर पीछे से,
रूकावटें  खड़ी होती हैं पहाड़ों सी,
कर लेती हूँ उनसे दो-दो हाथ, 
कटाक्षों और तानों के हुजूम भी हैं,
घायल कर रही हूँ उन्हे अपने पुरुषार्थ से, 
आँसुओं के सैलाबों के बीच 
मुस्कुरा रही हूँ मै, 
चलती चली जा रही हूँ आगे को, 
जी रही हूँ देख फिर भी, 
खुश हूँ, स्वछंद हूँ, 
अपनी धुन में मगन, स्वतंत्र हूँ, 
ना साथ है तेरा, 
ना तेरा हाथ है, 
कोशिश तो थी तेरे संग चलने की,
देख चल पङी हूँ मैं अब बिना तेरे हाथों को थामे...।।

©मधुमिता

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