Monday, 5 December 2016

बदलाव...



सुबह बदली सी है,
शाम भी बदली बदली,
हवा का रुख़ भी बदला सा है,
बदली सी है कारी बदली।


गाँव बदल रहे हैं, 
शहर बदल रहे हैं,
बदली सी धरती अपनी,
बदला बदला सा आसमान।


नज़र बदल रही है,
नज़ारे बदल रहे हैं,
बदले से हैं यहाँ ईमान,
बिल्कुल बदल गया इंसान।    


दुनिया बदल रही है,
ज़माना बदल रहा है,
बदल रही हैं ख़्वाहिशें,
बदल से रहे हैं अब सपने।


बदले बदले से हैं सब जो थे अपने,
बदल गये हैं रास्ते, 
बदल से गये हैं सबके दिल अब,
ना जाने कैसे, कब बदल गया यूँ सब।


प्रौद्योगिकी का ज़ोर है,
प्रतियोगिता, प्रतिस्पर्धा की होङ है,
मानव भी मशीन सा हो गया है,
वाहन सा इधर उधर जीवन को ढोह,दौङ रहा है। 


कुछ भी पहले सा ना रहा,
रिश्ते नाते भी अब बदल गये,
दोस्त भी अब पहले से ना रहे,
शायद हम भी कुछ अब बदल से गये।।

©मधुमिता

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