Tuesday, 13 February 2018

बस दो गज़ ज़मीन को पा जाने को..



कभी रोते हो,
कभी रुलाते हो,
मुस्कान मिटा आते हो,
ज़ोर खूब आजमाते हो,
बस दो गज़ ज़मीन को पा जाने को!


मरते हो,
मार जाते हो,
लुट जाते हो,
लूट आते हो,
बस दो गज़ ज़मीन को पा जाने को!

तेरा मेरा करते हो,
अपना पराया जपते हो, 
ज़मीं दर ज़मीं बाँट आते हो,
राम औ' रहीम को अलग बताते हो,
बस दो गज़ ज़मीन को पा जाने को!

कभी ख़ौफ़ हो,कहीं मौत हो,
संत्रास कहीँ, कभी संताप हो,
चोट हो, आघात हो,
हे मनु! क्यों इतने घृणित हो तुम?
अंत मे बस दो गज़ ज़मीन को पा जाने को!

©®मधुमिता 

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