हरी इलायची सी
तीक्ष्णगंधा
हरी इलायची सी
तीक्ष्णगंधा
ऐ ज़िन्दगी
तेरे कितने रंग
कितने ढंग
हर रंग में रंग जाने को
जी चाहता है
हर ढंग अपनाने को
ये दिल मचलता है
चल बन जाती हूँ मैं भी
तुझ सी
ऐ ज़िन्दगी!
©®मधुमिता
#ज़िन्दगी4
सुर्ख़ गर्म अंगारों सी
कभी बर्फीली बौछारों सी
मसाला-नींबू के चटखारों सी
भरी बरसात में
धीमी आँच पर भुनती
सुनहरे भुट्टे की ख़ुश्बू सी
सोंधी-सोंधी सी ज़िन्दगी!
©®मधुमिता
#ज़िन्दगी3
ज़िन्दगी की रेलम पेल में हुज़ूर
इतनी अदब रखिए ज़रूर
कभी किसी राह में गर टकरा जाएँ
तो कह सकें कि
"कहिए कैसे हैं जनाब!'
©®मधुमिता
#ज़िन्दगी1
नही हमारे लिये यह निःशब्दता ना ही सन्नाटा मौत का,
ना पृथकता ना ही संजातीय पार्थक्य ,
और ना यह विश्रृंखल तंत्रिका विध्वंसकारक आवाज़ बमों और गोलियों की,
या यह खूनी बदबू , रक्तरंजित धरती की,
उष्म स्वर में शांति की आवाज़ लगाओ, मुहब्बत के सैलाब में, इस दुनिया को परिगृहित कर।
©®मधुमिता
ना असर करती है दुआ,
हो गयी बेअसर हर दवा l
ना रस,ना जल,ना हवा,
बस इक सूखा सा कुआं l
रुक जा ऐ उमर !
तू भाग चली किधर?
फिसल चली हाथों से,
टल रही है सब यादों से,
बालों की सफेदी से झांकती,
सर्द सी कफन मुझ ओर रेंगती,
धीमे-धीमे, हौले-हौले,
ना जाने कब यूंही मौत मुझसे मिलेll
©®मधुमिता